बैठी हूँ फ़ुरसत से आज अपना हाल बयाँ करनें लफ़्ज़ों के ज़रिये अपने ख़्वाब़-ओ-ख़्याल बयाँ करनें, कह पाना जिन बातों को अक्सर होता नहीं है मुमकिन, कलम की जादूगरी से ऐसे कुछ कमाल बयाँ करनें, इक अरसे से बेज़ारी में ही गुज़री है जो "हय़ात", उस मायूस सी ज़िदगी में छिपा अमाल बयाँ करनें, बेसुद हो कर बस चल रही हूँ इक चिराग को थामें पर मिल ना सका है रहब़र कुछ भी फिलहाल बयाँ करनें...!
इन हवाओं में घुलनें को जी चाहता है इन फ़िज़ाओं में बसनें को जी चाहता है मेरी इस 'अटपटी' जिंदगीं की कहानी को, मेंहदी से भी गहरा रचने को जी चाहता है.. कभी टूटे पत्तों संग उड़ने को जी चाहता है, कभी चिड़िया-सा चहकनें को जी चाहता है, तेज़ नदी के उस प्रचंड उफ़ान को देख कर, मेरा भी उसकी गति से बहने को जी चाहता है.. कभी सितारों जैसा टिमटिमानें को जी चाहता है कभी सन्नाटे जैसा-ही परसनें को जी चाहता है और उस उड़ते हुए मदमस्त जुगनू को देख कर, मेरा भी उसके जैसा ही चमकनें को जी चाहता है..♥
एक लफ़्ज़ मोहब्ब़त है जानम ,हम बात उसी की करते हैं फिर इश़्क की राहों में दोनों..चलो गिरते और संभलते है, उन सरपट-सी पकडंडियों से, आओ दौड़कर निकलते हैं फिर उन बागीचों में चलकर.. एक- दूजे पर हम मरते हैं, उस प्रेम नदी के झरनें पर, कभी डूब-डूब, फिर तरते हैं रेलों की उन सीधी पटरियों पर दोनों हाथ थाम गुज़रते हैं, कभी बेबस होकर हम फिर से..खोनें से इश़्क को डरते हैं, तुम हाथ पकड़ लो ना आकर..अतीत में हम चलते हैं ♥
यूँ तो कई नये मोड़ दिखाता है जीवन..लेकिन, कोई एक ही बढ़कर, राह-ए-मंजिल हो पाता है,, ज़िंदगी की दौड़ में हम अक्सर इतना खो जाते हैं िक, रुककर साँस लेना भी बड़ा मुश्किल हो जाता है !!