खिली खिली धूप जब खिड़की को छू कर कमरे मे आया करती थी,
तुम्हारी पलको पर बैठ कर जब वो तुम्हे उठाया करती थी,
वो लम्हा देखे बहुत दिन हो गए।।
यूँही नज़रे उठा कर जब तुम आफताब की रोशनी को देखा करती थी,
फिर बेख़बर होकर तुम मेरी अर्ज़ीयों पर मुस्कुरा देती थी,
ऐसे शादमानी वाले पल जिये बहुत हो गए।।
वो अनकही मुलाकातें जिनमें तुम मुझे उन्स के किस्से सुनाती थी,
और खुद ही हस्ते हस्ते भूल जाती थी,
इन बातों पर हँसे बहुत दिन हो गए।।
जब तुम अपनी अधूरी सी , छोटी सी ख्वाहिशें मुझे बताती थी,
और इनके मायने ढूढ़ने मेरे साथ तुम गुज़रगाह पर चलती थी,
ऐसी अहसन शामें देखे बहुत दिन हो गए।
.. बहुत दिन हो गए।।
-