तुमने अलग सूरज ढूंढ़ लिया है
शायद कोई तो बात है
अब तुम्हे अंधेरा दिखता नही
और यहाँ कितनी अंधेरी रात है।।-
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कहने को तो, एक ही है शाम,
एक ही है सवेरा,
मगर गौर से देखो तो,
सबके लिए ,अलग है अंधेरा।।-
खिली खिली धूप जब खिड़की को छू कर कमरे मे आया करती थी,
तुम्हारी पलको पर बैठ कर जब वो तुम्हे उठाया करती थी,
वो लम्हा देखे बहुत दिन हो गए।।
यूँही नज़रे उठा कर जब तुम आफताब की रोशनी को देखा करती थी,
फिर बेख़बर होकर तुम मेरी अर्ज़ीयों पर मुस्कुरा देती थी,
ऐसे शादमानी वाले पल जिये बहुत हो गए।।
वो अनकही मुलाकातें जिनमें तुम मुझे उन्स के किस्से सुनाती थी,
और खुद ही हस्ते हस्ते भूल जाती थी,
इन बातों पर हँसे बहुत दिन हो गए।।
जब तुम अपनी अधूरी सी , छोटी सी ख्वाहिशें मुझे बताती थी,
और इनके मायने ढूढ़ने मेरे साथ तुम गुज़रगाह पर चलती थी,
ऐसी अहसन शामें देखे बहुत दिन हो गए।
.. बहुत दिन हो गए।।
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कुछ आँसू छोड़ दियें है हमने , उन गमों के वास्ते
जो अभी तक मिले नही हैं
तलाश रहेगी उन रोशनी से भरे रास्तों की
जो अभी तक बने नही हैं।।-
बादल बरस रहें हैं, बरस जाएंगे
ज़िन्दगी के पल गम से थोड़ा सिसक जाएंगे
फूल हो तुम, अगर तुम भी मुरझा गए
तो उड़ते भवरे, खुशबू ढूंढने किधर जाएंगे?-
अलग ये कोई बात नही बस दिल के अल्फ़ाज़ हैं
उजाला थोड़ा सो रहा है, अभी थोड़ी रात है।।
बहुत दिनों से कुछ कहा नही कुछ सुना नही
झूठ का आसमां बरस रहा है, शायद चुप सारे राज़ हैं।।
थी मासूम सी शिकायतें तुम्हारी भी मेरी भी
सुलझ कर बहुत कुछ उलझा है, बस ये थोड़ी सोचने वाली बात है।।
अलग ये कोई बात नही बस दिल के अल्फ़ाज़ हैं
उजाला थोड़ा सो रहा है, अभी थोड़ी रात है।।
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बात होती कुछ और है, कुछ और बताई जाती है,
जिसको हो बताना ,उसी से छुपाई जाती है।।-
नज़र तुम्हारी थी उन ग़म की बूंदों पर ,जो पिछली रात बरस गईं,
ओस आज गिरी उम्मीदों की पत्तों पर, जो तुमने देखा नहीं।
थे बहुत अफ़्सुर्दा के क़िस्से तुम्हारे पास ,लोगो को सुनाने के लिए,
खिल उठे पूरे आंगन के फूल, कल की बारिश से, जो तुमने देखा नहीं।।
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अंधेरा भी तनहा है आजकल,
उसकी शाम की हल्की हल्की बाते जाने कहाँ खो गई?
नीलाम हो गए है अब शबाब आशिकी के,
मोहब्बत की कीमत जाने कहाँ खो गई?
ढूंढते रहे तुम खूबसूरती के मायने किताबों में,
उन किताबो के पन्नों से आती खुशबू जाने कहाँ खो गई?
तोड़ लाये तुम सारे गुलाब किसी की चाहत में,
और सब सोचते हैं कि,
उन सूनी क्यारियों की ज़न्नत जाने कहाँ, खो गई?-