मैं आम ही खास हूं...
उचाइयों से पूछा गया
गहराइयों का हिस्सा हूं
मैं लाख दफा दोहराया गया
हारा हुआ किस्सा हूं...
शुरू से शुरू कहानियों के बिच
दफन मंजिल की घुटन सी हूं
मैंने खुद लिखे किताब का
कोरा छूट जाए वो पन्ना हूं...
कई पंछियों के बीच कैद
ऊंची उड़ान सी हूं
सबसे हट कर
आजाद ख्वाब सी हूं...
मैं आम ही खास हूं...🥀-
कागज गीले हैं मेरे स्याही से...
वोह स्याही जज्बातों से भीगी हैं...
हर ... read more
रंग जो तेरा लगे मैं लाल रंग ओढ़ जाऊं
जो बेरंग हो सफेद कफन हो जाऊं
कहे अगर होली सा त्योहार है तू
मैं रंगो का मेला हो जाऊं
मैं तुझसे मिल फिर एक बार
तेरे रंग रंग जाऊं...-
वो कभी तुम न थे
जिससे मोहब्बत होने कि चाहत थी
जो हुई मोहब्बत तो कहने की ताक़त थी
कह भी दिया तो कभी लगा न था के इतने लाजमी होगे तुम
अब जो लाजमी हो सोचा न था बस उलफत सी थी...
के वो कभी तुम न थे।
वो कभी तुम न थे
जिसके लिए कभी कलम उठाई थी
जो उठाई कलम लिखने मे आशिक़ी थी
हैं भी जो अब आशिक़ी लगा न था के इतनी बेइंतहा होगी
अब जो बेइंतहा हैं सोचा न था वो तुमसे ही थी...
वो कभी तुम न थे।
वो कभी तुम न थे
जिसके लिए अश्क बहाया करती थी
जो बहाए भी अश्क वजह तेरी जुदाई थी
अब जो जुदाई हैं ही लगा न था के इतनी बेबर्दाश्त होगी
अब जो बेबर्दाश्त हैं सोचा न था के दूरी ही थी...
वो कभी तुम न थे।
-
मुझे सिर्फ मुझसा बनना हैं
समंदर की उठती लहरों में जो गुरूर हैं
वो बनना है
मुझे चांद परे आसमां की चमक सा बनना है
मुझे दहकती लपटों से भय नहीं
आग में जलते लोहे सा बनना हैं
मैं पिघल जाऊं जो
जंजीर का आकार बनना हैं
मुझे सिर्फ मुझसा बनना हैं...
केवल सूखे पत्तों का अंत नहीं
फूलों की बहार बनना हैं
कोई हारा हुआ किस्सा नहीं
जीतने वाला तजुर्बा बनना हैं
गहराइयों से खौफ नहीं
कश्ती का किनारा बनना हैं
मुझे किसी और सा नहीं
मुझे सिर्फ मूझसा बनना है...-
कहूं जो कभी चाहत है
तुम मिल जाना
मांगू कभी खुशियां
तुम आ जाना
मैं कहूं अगर आज़ाद हूं मैं
तुम पंख लेते आना
मेरे उड़ने का
जरिया बन जाना
मैंने देखे है ख़्वाब कई
उनका हिस्सा बन जाना
लिखूं जो कोई कहानी नई
तुम किस्सा बन जाना-
Part 2
पावसा...किती रे खोडकर तू...!
तू येतोय कळताच आनंदली ती,
तुझ्यावर रुसावं म्हणून शुष्क झाली,
किती रागावली आहे सर्वांना दिसलं,
पण एका नजरेने फक्त तुझी वाट बघणं,
तिचं तिलाच कळलं...
रुसवा फुगवा न मोडता तुला जावं वाटलं का रे?
पावसा...किती रे खोडकर तू...!
प्रेमानी चिंब भिजवून,
तिला अलंकारीत करून,
पुन्हा तुझे परत वळणे,
तिला आणि सर्वांना खुळ लावून,
तुझे असे कठोर होणे,
अपरिहार्य होते...?
केवळ आश्वासन देऊन तुला खरचं जावं वाटलं का रे?
पावसा...किती रे खोडकर तू...!-
Part 1
पावसा...किती रे खोडकर तू...!
लपाछपी चा डाव खेळत,
अवखळपणाचे चाळे करत,
थोडा हसत, थोडा रडत
ढगाआड दडत,
थोडासा रिमझिमलास,
भरलेले ढगही परत घेऊन गेलास,
आतुरलेली माती आणि मनही किती,
ओसाड सोडून तुला जावं वाटल का रे?
पावसा...किती रे खोडकर तू...!
गवाक्षातून काळेभोर आभाळ बघावे,
की भुईत घाम पेरून तुला साद घालावी,
म्हणावं की थांब रे बाबा थोडा,
तुझ्या स्पर्शात भिजावं,
म्हणून सजनारी ती...
आणि तुझे असे अंतर ठेवणे,
तिला किती छळत असावं,
तिला निरर्थक सोडून तुला जावं वाटलं का रे?-
मैंने रख ली नाराज़गी तुम्हारी,
मोहब्बत की ही तरह
तुम्हारी खामोशी भी बातूनी है,
ठीक तुम्हारी आंखो की तरह
गुस्से में ये जो जुल्फें बिखेरे राह देख रही हो,
गुस्सा हो भी या बस यूंही सता रही हो
चलो मना भी लेते हैं तुम्हें,
वादा करो, मान जाओगी हर बार की तरह...
(बात बस इतनी सी है के...)✍️❤️-
मैं रुक जाऊं, आहट जो हो तेरी
जो ना हो मैं ख़ामोशी हो जाऊं...
तू छेड़े जो, आदि हो जाऊं तेरी
जो ना छेड़े मैं गुस्ताखी बन जाऊं...
रंग जाऊं तुझमें, जो भी रंग हो तेरा
जो ना हो बेरंग ही रह जाऊं...
इक छोर बनूं, जो प्यार हो तेरा
जो ना हो इक तरफा रह जाऊं....
(बात बस इतनी सी है के...) ✍️❤️-