Mahima Itkikar   (Mahima Itkikar)
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Joined 9 March 2020


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Joined 9 March 2020
6 APR 2022 AT 23:16

मैं आम ही खास हूं...

उचाइयों से पूछा गया
गहराइयों का हिस्सा हूं
मैं लाख दफा दोहराया गया
हारा हुआ किस्सा हूं...

शुरू से शुरू कहानियों के बिच
दफन मंजिल की घुटन सी हूं
मैंने खुद लिखे किताब का
कोरा छूट जाए वो पन्ना हूं...

कई पंछियों के बीच कैद
ऊंची उड़ान सी हूं
सबसे हट कर
आजाद ख्वाब सी हूं...

मैं आम ही खास हूं...🥀

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18 MAR 2022 AT 23:37

रंग जो तेरा लगे मैं लाल रंग ओढ़ जाऊं
जो बेरंग हो सफेद कफन हो जाऊं
कहे अगर होली सा त्योहार है तू
मैं रंगो का मेला हो जाऊं
मैं तुझसे मिल फिर एक बार
तेरे रंग रंग जाऊं...

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20 JAN 2022 AT 23:50

वो कभी तुम न थे
जिससे मोहब्बत होने कि चाहत थी
जो हुई मोहब्बत तो कहने की ताक़त थी
कह भी दिया तो कभी लगा न था के इतने लाजमी होगे तुम
अब जो लाजमी हो सोचा न था बस उलफत सी थी...
के वो कभी तुम न थे।

वो कभी तुम न थे
जिसके लिए कभी कलम उठाई थी
जो उठाई कलम लिखने मे आशिक़ी थी
हैं भी जो अब आशिक़ी लगा न था के इतनी बेइंतहा होगी
अब जो बेइंतहा हैं सोचा न था वो तुमसे ही थी...
वो कभी तुम न थे।

वो कभी तुम न थे
जिसके लिए अश्क बहाया करती थी
जो बहाए भी अश्क वजह तेरी जुदाई थी
अब जो जुदाई हैं ही लगा न था के इतनी बेबर्दाश्त होगी
अब जो बेबर्दाश्त हैं सोचा न था के दूरी ही थी...
वो कभी तुम न थे।

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19 JAN 2022 AT 17:29

मुझे सिर्फ मुझसा बनना हैं
समंदर की उठती लहरों में जो गुरूर हैं
वो बनना है
मुझे चांद परे आसमां की चमक सा बनना है

मुझे दहकती लपटों से भय नहीं
आग में जलते लोहे सा बनना हैं
मैं पिघल जाऊं जो
जंजीर का आकार बनना हैं
मुझे सिर्फ मुझसा बनना हैं...

केवल सूखे पत्तों का अंत नहीं
फूलों की बहार बनना हैं
कोई हारा हुआ किस्सा नहीं
जीतने वाला तजुर्बा बनना हैं

गहराइयों से खौफ नहीं
कश्ती का किनारा बनना हैं
मुझे किसी और सा नहीं
मुझे सिर्फ मूझसा बनना है...

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20 NOV 2021 AT 9:05

कहूं जो कभी चाहत है
तुम मिल जाना
मांगू कभी खुशियां
तुम आ जाना

मैं कहूं अगर आज़ाद हूं मैं
तुम पंख लेते आना
मेरे उड़ने का
जरिया बन जाना

मैंने देखे है ख़्वाब कई
उनका हिस्सा बन जाना
लिखूं जो कोई कहानी नई
तुम किस्सा बन जाना

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3 SEP 2021 AT 23:57

3 P's to success...
PAIN
PLANNING
PERSEVERNCE

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12 JUL 2021 AT 23:07

Part 2
पावसा...किती रे खोडकर तू...!
तू येतोय कळताच आनंदली ती,
तुझ्यावर रुसावं म्हणून शुष्क झाली,
किती रागावली आहे सर्वांना दिसलं,
पण एका नजरेने फक्त तुझी वाट बघणं,
तिचं तिलाच कळलं...
रुसवा फुगवा न मोडता तुला जावं वाटलं का रे?

पावसा...किती रे खोडकर तू...!
प्रेमानी चिंब भिजवून,
तिला अलंकारीत करून,
पुन्हा तुझे परत वळणे,
तिला आणि सर्वांना खुळ लावून,
तुझे असे कठोर होणे,
अपरिहार्य होते...?
केवळ आश्वासन देऊन तुला खरचं जावं वाटलं का रे?
पावसा...किती रे खोडकर तू...!

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12 JUL 2021 AT 23:06

Part 1
पावसा...किती रे खोडकर तू...!
लपाछपी चा डाव खेळत,
अवखळपणाचे चाळे करत,
थोडा हसत, थोडा रडत
ढगाआड दडत,
थोडासा रिमझिमलास,
भरलेले ढगही परत घेऊन गेलास,
आतुरलेली माती आणि मनही किती,
ओसाड सोडून तुला जावं वाटल का रे?

पावसा...किती रे खोडकर तू...!
गवाक्षातून काळेभोर आभाळ बघावे,
की भुईत घाम पेरून तुला साद घालावी,
म्हणावं की थांब रे बाबा थोडा,
तुझ्या स्पर्शात भिजावं,
म्हणून सजनारी ती...
आणि तुझे असे अंतर ठेवणे,
तिला किती छळत असावं,
तिला निरर्थक सोडून तुला जावं वाटलं का रे?

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29 JUN 2021 AT 23:09

मैंने रख ली नाराज़गी तुम्हारी,
मोहब्बत की ही तरह
तुम्हारी खामोशी भी बातूनी है,
ठीक तुम्हारी आंखो की तरह
गुस्से में ये जो जुल्फें बिखेरे राह देख रही हो,
गुस्सा हो भी या बस यूंही सता रही हो
चलो मना भी लेते हैं तुम्हें,
वादा करो, मान जाओगी हर बार की तरह...

(बात बस इतनी सी है के...)✍️❤️

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27 JUN 2021 AT 18:16

मैं रुक जाऊं, आहट जो हो तेरी
जो ना हो मैं ख़ामोशी हो जाऊं...
तू छेड़े जो, आदि हो जाऊं तेरी
जो ना छेड़े मैं गुस्ताखी बन जाऊं...
रंग जाऊं तुझमें, जो भी रंग हो तेरा
जो ना हो बेरंग ही रह जाऊं...
इक छोर बनूं, जो प्यार हो तेरा
जो ना हो इक तरफा रह जाऊं....

(बात बस इतनी सी है के...) ✍️❤️

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