तुम मेरे लिए क्या हो मैं कैसे बयां करूं सीता के लिए जो राम थे मीरा के लिए जो श्याम थे राधा के लिए जो कृष्ण थे सती के लिए जो शिव थे माही के लिए वो ही अंकित है ।
विधाता की रचना मैं हूँ पृथ्वी का केंद्र मैं हूँ सृष्टि का बल मैं हूँ श्रेष्ठ कहता है तू स्वयं को नारी से क्या रक्त रिसता है तेरी जंघाओं पे क्या बल है तेरी छाती में वो क्षीर सागर से बनाये जो जीवन
आत्महत्या मन की लहरों का किनारा नहीं, उमड़ते प्रश्नों का जवाब भी नहीं । प्रकृति का नियम है, चट्टान निराशा की हो अति भारी, मनुष्य उसे उठा सकता है । वो उसे नहीं उठा सकता, ये केवल एक मनुष्य ही मनुष्य को सिखाता है ।
जिन यादों की गठरी बांध कर, किसी कोने में रख दी गई थी, एक धक्के से केवल, वो आज गिर गई । कहीं सबसे नीचे दबी यादें गिरकर सबसे ऊपर आ गई हैं । इसे कभी ना कभी तो गिरना ही था.....