mahesh kumar   (महेश की कलम से)
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HOST- दिल की बात महेश के साथ
Joined 6 August 2018


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17 HOURS AGO

चलो स्वस्थ भारत की नींव बन जाएं!!
मिलकर सब आजादी का पर्व मनाएं!!!
HAPPY 79th INDEPENDENCE DAY

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8 AUG AT 17:45

समस्त देशवासियों को रक्षाबंधन के पर्व के उपलक्ष्य पर बहुत सारी हार्दिक शुभकामनाएं!!
बस एक भाई अपनी लाडली बहिन से इतना ही कहेगा कि बहिन के जीवन में न आएं कभी बाधाएं!!!
और बहिन हमेशा खुश रहे ,बस हमेशा खुश रहे!!!!

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4 AUG AT 14:56

बाहों में हमराज की सिमट कर चूर चूर हो गए!!
हुई क्या ऐसी मजबूरी जो एक दूजे से दूर हो गए!!!

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4 AUG AT 14:37

लबों पर लाली उनके भी थी, लबों पर लाली हमारे भी थी, ये बात और है कि उनके लबों पर ज्यादा और हमारे लबों पर कम थी!!!
तुम्हीं बताओ अब इसे मोहब्बत न कहें तो क्या कहें???

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2 AUG AT 8:54

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1 AUG AT 18:37

बयां कर ही देते हो, हक़ीक़त को, कभी हक़ीक़त से रुबरु करा भी दिया करो!!
खुदा यूं ही नहीं मुबारक हाथों को सलामत रखता है, वक़्त मिले तो पुराने चहरों को याद कर लिया करो!!!

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1 AUG AT 8:40

दिल में प्यार है कह भी दो न छुपाते नहीं!!
प्यार करके छोड़ दे वो हम हरगिज़ नहीं!!!

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31 JUL AT 12:01

       पहली दफा

तुझसे तेरे अल्फ़ाज़ से पहली दफा रुबरु हुआ हूं!!
थाम कर कलम का हाथ मैं ग़ज़ल लिखने चला हूं!!!

जरुर वक़्त ने दिया होगा धोखा तुझे!!
जानकार तुझे हुआ है एहसास मुझे!!!

मानों बंद किताब को वर्षो के बाद आज खोला है!!
पढ़कर पाया कि हर शब्द बड़ा ही अलबेला है!!!

निगाहों ने भी कई अर्से बाद किसी को निहारा है!!
जरुर ढूंढा इन्होंने मुद्दत बाद कोई चाहने वाला है!!!

गुज़ारिश है इतनी सी की दिल में हमें अपने रखना!!
गिर अगर जाएं नज़रों से तेरी तो मुड़कर न देखना!!!

पहली दफा जिसपे दिल से लिख रहा हूं ग़ज़ल!!
क्या यकीनन पढ़ रहा होगा वो मुझे आज कल!!!

लिखी ग़ज़ल महेश की कलम ने!!
बहुत शुक्रिया आपका की पढ़ी आप ने!!!

लेखक - महेश कुमार
9312712542

















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15 JUL AT 19:49

मैं अभागा बिन बाप का

उठ गया साया मेरे सर से मेरे बाप का, मैं
अभागा रह गया हाय बिन बाप का!
देखी जिसमें बाप की छाया,बात औलाद की मानके किया उसने भी मुझसे किनारा,मैं अभागा रह गया हाय बिन बाप का!!

उठ गया साया मेरे सर से मेरे बाप का, मैं अभागा रह गया हाय बिन बाप का!
रिश्ते नातों के भवसागर में बह गया बिन बात के, आया होश तो पाया नहीं रहा वजूद खुद का!!

उठ गया साया मेरे सर से मेरे बाप का, मैं अभागा रह गया हाय बिन बाप का!
कैसे खींची लकीर बन गया भागीदार, बेवजह फकीरी का!!
उठ गया साया मेरे सर से मेरे बाप का, मैं अभागा रह गया हाय बिन बाप का!
सुन रहे हो दास्तां मेरी, मगर सच कहूं नहीं है अब वक्त मुलाकात का!!

उठ गया साया मेरे सर से मेरे बाप का, मैं अभागा रह गया हाय बिन बाप का!
जा रहा हूं दूर सबसे , अब रहना खुश न करना गम किसी बात का!!

जाते जाते बस इतना ही कहूंगा रह गया मैं अभागा बिन बाप का!!!!!!



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13 JUL AT 17:41

न दोस्त बचे हैं न दुश्मन बचे हैं!!
है गम तो इस बात की हम क्यों बचे हैं!!
   @maheshkikalamse

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