ओ रुठे दिल अब मान भी जा !
हँस ले जरा तू अब मान भी जा !!
सूख रहा कंठ तलब प्यास की बढ़ी !
कब लौटेगी ख़ुशियाँ ले प्रीत की घड़ी !!
बिखरी हैं तेरी ही य़ादें इन हवाओं में !
फूलों-सी बिखेरे हँसी इन फ़िज़ाओं में !!
चल लौट आ अब न आँखों को दे सजा !
इक प्यार मुस्कुरा के ,सोए मन को जगा !!
तेरे संग नाचूं और गाऊं ,प्य़ार के नगमें सुनाऊं !
बदनाम न हो मुहब्बत वफ़ा न दें प्यार को दगा !!
-Mahesh Kumar Sharma
01/06/2025
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अधूरा सा प्यार ...बस इंतज़ार बस इंतज़ार रात दिन...
यादों में सिमटे लम्हें फैले दिल के चहुंओर !
कहाँ रह गए छोड़ मुझे ,बोलों न चितचोर !!
रोते-रोते रैन बीत रही ,सुध बिसरा दी तूने ,
द्वारे बैठ बाट निहारुं , आ ! होने को है भोर !!
अधूरा सा प्यार...बस इंतज़ार बस इंतज़ार रात दिन...
-Mahesh Kumar Sharma
29/06/2025
- (शेष रचना कैप्शन में )
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पसीने की बूँद से सोना उगाता किसान !
मेहनत ही धन उसका मेहनत ही ईमान !!
धूप में तपकर ,मिट्टी में सने हाथों से ,
नित धरती का आँचल संवारता है !
बीज में छुपी उम्मीदों को सींचकर ,
अपने सोए सपनों को उभारता है !!
अपनी मस्ती में रह ,छेड़ता जीवन तान ...
पसीने की बूँद से ,सोना उगाता किसान !!..मेहनत
मुस्कुराता है प्रकृति संग मुस्कानों में ,
उदास रहता कहर और अपमानों में !
रुखी-सूखी खाकर सदा संतोषी वह ,
हीरे-मोती उपजाकर भी जीता है तानों में !!..पसीने
हर हाल में ख़ुश वह अन्नदाता किसान !
मेहनत ही धन उसका मेहनत ही ईमान !!
-Mahesh Kumar Sharma
28/06/2025
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रुनझून बजे पायल ,हर सूं महकता गुलाब प्यारा है !
इज़हारे इश्क़ किया है ,हर ख़ुशी-औ-रंज हमारा है !!
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विश्वास की डोर में बँधा न हो जो प्यार !
प्यार नहीं "छल" है वो दुर्भावों का संचार !!
भले ही मजबूत दिखती हो आस की डोर !
पर खोखली है भीतर से हो के छार -छार !!
दिल को खिलौना समझने की भूल करके ,
जज़्बातों से खेलकर ,दरक रहा घर-संसार !!
विश्वास ही तो है प्रेम का सहज प्रकृत सार !
डोर इसकी टूटने पर टल जाता केन्द्र आधार !!
संदेह की हवा से मत हिलाओ इसकी दृढ़ चूलें !
तूफानों में भी थामें रखना ,मत छोड़ना मूल आधार !!
-Mahesh Kumar Sharma
27/06/2025
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मुझे अपनी धड़कन बना लो ,
हर साँस में अपनी सजा लो ,
मुझे अपनी धड़कन बना लो !
यूँ जुड़ जाओं मुझसे सदा को ,
भटकनों से ये जीवन बचा लो !!
धड़कन में बस तू डोले ,
हर श्वास तुझसे ही बोले
सच जीवन में प्रीत है ,
मैला मन भी तू आज धो ले !! मुझे अपनी..
तू ही धरती तू ही गगन है ,
तू ही मेरा तन-मन-प्राण है !
ये मैं हूँ बस एक छाया ,
तू ही असली जीवन धन हैै !! हर साँस में ...
खो दूँ ख़ुद को तेरे भीतर ,
ना कोई नाम , न कोई सीमा ,
मैं और मेरा सब बह जाए
बचे बस तू ही प्रेम नगीना !! मुझे अपनी...
-Mahesh Kumar Sharma
26/06/2025
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चलो आज फ़िर एक नई कहानी हो ,
कुछ मेरी कुछ तुम्हारी जुबानी हो !!
धड़कनों में छुपी हर रवानी हो ,
कुछ मेरी कुछ तुम्हारी जुबानी हो !!
बदल दें किस्से-कथा जो पुरानी हो ,
नज़रों में नई सी काेई रवानी हो ,
खुशियाँ रोकों नहीं ,आने दो द्वारे ,
मीत ,आज मुक्त चिंताओं से पेशानी हो !! चलो...
तो क्या हुआ ग़र आँसू आँखों में है ?
ज़िंदा है एहसास तभी तो पानी हैै !
तुम्हारी कुछ मुस्कानें सहेजी हैं मैंने ,
ये दिल-ए-दर्द की दवा -प्रेमनिशानी है !!चलों ...
आओं मिलें ,तोड़े ख़ामोशी की दीवारें ,
अधूरे ख्वाब़ मुकम्मल करें आज सारे !
शब्दों की चुप्पी तोड़े ,तम से बाहर आए ,
उजालों में महकें सुमन प्रीत के प्यारे !!
चलों आज फ़िर एक नई कहानी हो ,
कुछ मेरी,कुछ तुम्हारी जुबानी हो !!
-Mahesh Kumar Sharma
24/6/2025
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सच्चाई से भरा होता है शिद्दत का प्य़ार !
रुह से रुह का जुड़ना है शिद्दत का सार !!
मन से मन की धड़कने मिलती हैं जहाँ -
वहाँ है वफ़ा का सागर ,भावों का विस्तार !!
धूर्त जमाने की चालों में थी साज़िशें हज़ार !
किया प्य़ार ने संजीदगी से घृणा का प्रतिकार !!
रहे न रहें ,मिटकर भी निभाएंगे वफ़ा-ए-य़ार -
एहसास ज़िंदा रहे ,दिलों में रहे शिद्दत का प्य़ार !!
-Mahesh Kumar Sharma
22/06/2025
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वक्त के थपेड़ों से नहीं टूटती रिश्तों की डोर !
यदि कसकर थामे होते हमने इसके दो छोर !!
हमारे स्वभाव की तल्ख़ी और तुम्हारी बेरुखी-
देख मन-ऑंगन से उड़ गया ख़ुशियों का मोर !!
नन्हा बिरवा बढ़ न पाया कड़वी ख़ुराक पाकर !
विश्वास की कमी देख बेदर्द हवा ने दिया मरोर !!
बुनना होता सरस प्रेम का ताना-बाना हमारे गिर्द !
जिसकी कशिश रिश्तों से दूर रखती संशयी चोर !!
बिखराव समेटा जा सकता है साथ-साथ आने से !
प्रीत गाँठ गठे विश्वास से ,ये गठती नहीं जोरा-जोर !!
-Mahesh Kumar Sharma
21/6/2025
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दिल के तूफान ने कहा —
मोड़ दे रुख मेरा,
कि बदल जाएँ नज़ारे।
बदलते नज़ारों को देख,
अलस में मुँह न मोड़,
रुठे हैं जो तुझसे —
उन्हीं से प्रीत जोड़ !!
(शेष रचना कैप्शन में )
-Mahesh Kumar Sharma
19/6/2025
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