वक़्त वक़्त की बात दुःख से सुख में कब बदल गई बे औलाद माॅ॑ की अब खुशियाॅ॑ झोली से सहल गई जो चला समय के साथ,उसकी धार यूॅ॑ तलवार हुई जहाॅ॑ था रेवड़ियों का कचरा वो देख हुआ महल गई।।
दर्द भी तुम हो और दवा भी तुम कौन पहचाने सर्द भी तुम हो और हवा भी तुम कौन पहघाने मैं तो सिर्फ़ एक दीवाना गमगीन कोने में बैठा फ़र्द भी तुम हो और सिवा भी तुम कौन पहचाने
ज़िन्दगी लिख दो उन हाथों से,जिनमें छाले पड़ गए कर्म थक गया है काम करके अब देह काले पड़ गए रुकना नहीं है ज़िन्दगी में मुसलसल चलना है मुझे उड़ाते थे जो मजाक मेरा उनके मुॅ॑ह पे ताले पड़ गए
तुझ बिन सावन, मानो तमस का दीदार हैं घुट जाए ज़िन्दगी लेकिन तुझ पे ऐतबार है बहुत किया इंतज़ार,मुझसे मिलो एकबार चाहा तुझे चाहूॅ॑गा जन्मभर दिल बेकरार हैं।।
क़िस्मत की लकीरों से,ऐसे कामयाबी नहीं मिलती ज़िन्दगी के बंद तालों की,ऐसे चाबी नहीं मिलती कुंदन बनने के लिए भी तपना पड़ता है सोने को मंज़िल के पास पहुॅ॑च ऐसे नाकामयाबी नहीं मिलती