Mahendra Sagar Sagar Sagar   (️सागर)
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Joined 10 September 2019


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Joined 10 September 2019

धर्म की ले बंदूक हाथ में
धर्म पूछते हत्यारे
आतंकी का धर्म नहीं
फिर कहने लगे धर्मी सारे
धर्म को इतना ऊंचा कर दो
‌‌ मानव छोटा पड़ जाए
पढ़ ना पाए अगर वो कलमा
जान गंवानी पड़ जाए
मज़हब वाले पानीपत में
कुरुक्षेत्र तो बौना है
जात पात की धम्मा चौकड़ी
आखिर सबको रोना है
काशमीर की घाटी में
पुलवामा हो या पहलगाम
आतंकवाद की भेंट चढ़ रहे
अल्लाह हो या चाहे राम
राजनीति की धर्म सभा में
राष्ट्रवाद का नारा दो
काशमीर की हर एक घर पर
अपना तिरंगा लहरा दो.....

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मोहब्बत का मुझ को किनारा मिला है
एक आवारा को देखो सहारा मिला है
बड़ी कसमकस में है यह सारा जमाना
मगर प्यार मुझ को तुम्हारा मिला है

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औरत हो ,
औरों की बनाई दुनिया में
बनाओ अपनी दुनिया
और अवतार हो जाओ ।।

महिला हो ,
महात्माओं की दुनिया में
जगाओ अपनी आत्मा
और परमात्मा हो जाओ ।।

अबला हो ,
बलवानों की दुनिया में
लगाओ अपना बल
और सबला हो जाओ ।।

स्त्री हो ,
ईश्वर की बनाई दुनिया में
दिखाओ अपनी दृष्टि
और सृष्टि हो जाओ ।।

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अलग अलग होकर हम अलग है
इसलिए सबसे हम अलग है

एक-दूसरे का होना अलग है
एक-दूसरे से होना अलग है
अलग-अलग है दोनों की राहें
मंजिल हमारी नहीं अलग है

🙏🙏 सम्पूर्ण रचना कैप्शन में पढ़ें 👇👇

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हर शख़्स उलझा है इसकी सुलझनों में
पर दुनिया जो किसी से उलझती नहीं है

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कितने ही दिल जोड़ती है
मदमस्त फ़रवरी
दिन कम है इसके फ़िर भी
ज़बरदस्त फ़रवरी

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प्रेम का दंश बड़ा जहरीला
कोई शहर न बच पाया
तेरा संग मिला फ़िर जानां
इस जहर से मैंने रब पाया

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मेरी आँखें यहीं कहती है
वो मेरी साँसों में रहती है
मैं मुसाफ़िर हूँ वो मंज़िल
मैं समन्दर तो वो कश्ती है ।

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28 NOV 2024 AT 6:50

याद तुझे हम हरपल करते
प्यार नहीं कर पाते हम
तुझे बसाया दिल में मगर
दीदार नहीं कर पाते हम
सारी दुनिया बैरन लगती
जब से दूर हुए तुम से
तुम पर अब अधिकार‌ नहीं
स्वीकार नहीं कर पाते हम ।।

आँखों में अब नमी जमी है
ना जाने कब पिघलेगी
जीवन की हर रात अमावस
ना जाने कब बदलेगी
कोई मुझको कुछ भी समझें
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मेरे दिल की गहराई को
तू जाने कब समझेगी ।।

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27 NOV 2024 AT 9:09

अपने किरदार से जीते हैं
हम अपनी कहानी ,
किसी के हिस्सों में होते हैं
तो किसी के किस्सों में ।

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