जब जी चाहा छोड़ दिया,
अपनेपन का वो रिश्ता तोड़ दिया,
लगते थे खास कभी तुमको,
फिर अचानक क्यूँ तुमने अपना रास्ता मोड़ लिया ?
सजे थे मेरे भी दिल में ख्वाब, कि होगा इक जहान अपना भी,
कैसे भूल गए अचानक, क्या नही आया तुमको मेरा इक सपना भी ?
यूँ तो ज़िंदगी में कई आये-गये , पर दिल तुमपे ठेहरा मानों मिल गई हो मंज़िल,
फिर बात करते करते अचानक क्यूँ दिया, तुमने अपने होटों को सिल ?
सुने कई गीत मुझसे और बस उनपे वाह वाह कर छोड़ दिया,
क्या उन गीत और आवाज़ के पीछे छुपी फीलिंग्स पर कभी गौर किया ?
तुम्हारी याद आती है बहुत, शायद तुमको भी आती हो,
क्या दिल में कोई और बसा है अब , जिससे ख्वाबों में मिलने जाती हो ?
लिख रहा हूँ दास्ताँ अपनी, ना समझना तुम इसको सिर्फ एक कविता,
अब भी ये राम तुझमें , देखता है अपनी सीता
देखता है अपनी सीता.... ।।
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