बे पनाह नफरत रख
पर रंजिश रखना कम
सजदे में सर हिल भी जाये
कभी मिल गए हम-
गिले शिकवे जीवित हैं
जब तक रहोगे दूर
मसले ये हल हो सकते हैं
साथ चलो कुछ दूर-
नारी का श्रृंगार अधूरा हैं बिन बिंदी के
हिंदुस्तान अधूरा हैं बिन मातृ भाषा हिंदी के
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एकता के सूत्र में पिरोने का विधान हैं
हिंदी भारत का गौरव और अभिमान हैं-
किसी को छोडना, किसी
को अपनाना पड़ता हैं
ज़हर को मारने के लिये
ज़हर खाना पड़ता हैं
बेफजूल नफरत पालने वालों
अमन और शांति के लिये
कभी कभी, दुश्मनों से भी
हाथ मिलाना पड़ता हैं
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बहुत भर भी लोगे अपना घर
फिर भी तुम चूक ही जाओगे
जब भी होओगे तुम रुकशत
यहाँ से खाली हाथ जाओ गे
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इश्क़ में बिछड़े हुए
तुमसे हुआ एक अरसा
जख्म हो जाता हैं हरा
जब जब सावन हैं बरसा
दिल का मरुस्थल भूल ना पाया
तेरे प्यार की बरसात
क्योंकि उसका नाम ही यारों हैं "वर्षा"-
इश्क़ का दौर वो भी कुछ था अलग
दिल के जज़्बात सजाते थे हम लिख कर ख़त
चुम कर लिफाफा उसे आँखों से लगाते थे
पढ़ कर प्रेम सन्देश उसे किताबो में छुपाते थे
मित्र बनते थे डाकिया, प्रेम का अचूक अस्त्र
आशिक़ी अधूरी थी बिन लिखें प्रेम पत्र
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प्री नर्सरी, नर्सरी तीन साल में
बचपन जीनो दो तुम
इन्हे इस साल में
प्राइवेट स्कूलों ने फसाया
हैं हमें इस जाल में
समय ही नहीं हैं हम दोनों
कामना चाहते हैं अब हर हाल में
एकाकी जीना हैं क्रेच तू संभाल दे
अपनों से दूर रहना हैं हर हाल में
जन्मदाता जन्म साथियो को पल में भुलाते हैं
संयुक्त परिवार से हम क्यों दूरियां बनाते हैं
प्रेम मोहब्बत सम्माम आदर का बीज इन्होने डाला हैं
नई नस्लों में तो हिंसक तनाव कामुकता का बोल बाला हैं
इन्हे परिवार ने नहीं, आया और क्रेच ने पाला हैं
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दस्तूर इश्क़ का हैं
ये आप सीख लीजिए
मोहब्बत जिस से कीजिए
उसे अपना वक़्त दीजिये
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