मैं जागता भी नहीं और सो रहा भी नहीं
कि पा रहा हूँ किसी को तो खो रहा भी नहीं..
मिरे लबों पे हँसी का कोई निशान नहीं
मिरी इन आँखों से ज़ाहिर है रो रहा भी नहीं..
बदन की किश्त में एक ऐसी फ़स्ल काटता हुँ
जिसे मैं ख़ुद तो किसी तरह बो रहा भी नहीं..
जो सोचता हूँ तो कोहराम सा मचा हुआ है
जो देखता हूँ, कहीं कुछ तो हो रहा भी नहीं..
मिरे वजूद पे लम्हों की गर्द जमती हुयी
मैं बे ख़बर कहीं से ख़ुद को धो रहा भी नहीं..
उसी की याद में दिन रात अश्कबार है चश्म
वो एक शख़्स मिरा अब के जो रहा भी नहीं..
'SANI'
- Sani