Maheen Mahi   (Melodious Maheen.)
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Joined 12 April 2020


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Joined 12 April 2020
22 DEC 2021 AT 0:38

जंहा से जाने का इंतज़ार हो वो घर नही लगता
वो कहता है कि में तेरा हूँ वो फ़क़त कह देने से
मेरा मगर नही लगता।
मेरे घर के दावेदार हैं कई
मुझको ये घर मेरी नज़र नही लगता
मकां तो जंहा मे हैं आलीशान बहुत मगर मे करूँ
अदा नमाज-ए-फजर कही और
ऐसा हो मुनासिब मुझे अजर नही लगता
“में सुकून की आमद बैठुं और पुर सुकून रंहु"
ये मुंसिब हो की मुनासिब लोगो को
हरगिज़ "हरफ" नही लगता।
में जंहा से लड़ भी लूँ यूँ तो
इतना तो मुझको खुदको मे भी दम नही लगता
"में अपने घर की फ़क़त दावेदार रही!"
रख कर फूल कब्र पर मेरी "माही"
कह रहे हो इंसाफ है। हैं?...
मगर मुझे नही लगता।

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13 OCT 2021 AT 22:33

Mein kahu toh Barbaad hu mein...
Tum dekho toh bewajah yunhi Azaad hu mein.
Nigahe had jaane hai meri.
Dil koi bhi to baat na maane hai meri...
Saanson per bhi sawal hai meri
Mout me meri itna bawal hai...
Meri marzi mein khandan ki izzaat ke sawal hain....
Isliye Meri mohabbat ko bhoolne ke halaat hain...


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8 JUL 2021 AT 12:59


ये जो दिल है क्या देख रहा है।
उजड़े हुए वीराने मे आशियाना देख रहा है।

है सियाह काली रात आयने मे
फिर भी आंध्यारे मे सवेरा देख रहा है।

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6 JUL 2021 AT 20:01

that, those moments were much better than Now

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6 JUL 2021 AT 14:01

तजुरबा और मौजज़ा जिंदगी
में बेहिसाब होना चाहिए।

कोई बोल दे ज़रुरी नहीं तुम सुन लो!
तुम्हारे पास भी जवाब होना चाहिए।

ख़्वाब तुम देखो मगरे पूरी करने
की ज़िद का सवाल होना चाहिए।

थकने को तो ठक जाओ मगर।
रुकने पर आज़ाब होना चाहिए।

घुमते हैं कुछ आशिक
हाथ में तेज़ाब लेकर।

तुम आशिक बन जाना मगर
दिल में मोहब्बत और हाथ

गुलाब होना चाहिए।

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4 JUN 2021 AT 15:03

मेरा घर तो वंही है। तेरा शहर पीछे छूट रहा
मैं हर दफा कह रही हूँ। तु मेरे ऐतबार मे टूट रहा।
मेरी वफा ज़माना याद करेगा
मुझे सच्चा इश्क़ था तुझसे।
तेरी बेवफाई मे तो मेरा सारा का सारा
फसाना ही झूट रहा।

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1 JUN 2021 AT 9:00

sacchi Mohabbatein naakam ghar beithi hain...
Fareb ishaq ka mukhota lye
sare bazar ghoom rha hai

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1 JUN 2021 AT 0:26

तुझे छौड़ ये एहसास हुआ की
आदतें कितनी भी पुरानी क्यों न हो
छुट जा या करती हैं

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17 APR 2021 AT 20:15

मुझमे बाकी अब भी थाकान है।
जो घर है तुम्हारा लगता क्यों मकान है ?
थक गया है वो ज़माने से पर
लौटने से भी नही लौटता घर
सभी झूठ देखे है
तब भी हर शक़्स सच्चा सा लगता है।
फरेब है आँखों मे सबकी
ना जाने क्यों जानने के बाद कुछ अच्छा सा लगता है
थाकान अपनी घर ही मिटा आना
मकान मे थकन भी कहर सा लगता है।
अपने घर की बात ही अलग होती है जनाब
वंहा का अंधेरा भी किसी सेहर से कम नही लगता है।

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7 APR 2021 AT 12:33

जो मुहब्बत है वो मुक़द्दर मे ही नही
और जो मुक़द्दर मे है उससे मोहब्बत नही ।

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