Madhyam Saxena   (Madhyam saxena)
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Poet
Joined 30 January 2017


Poet
Joined 30 January 2017
28 SEP 2021 AT 18:44

इस मर्ज़ ए मोहब्बत का शिफ़ा-खाना कहां है?
या इतना बता दीजिए मयखाना कहां है?

जलना तो मेरा तय है, मगर सोच रहा हूं।
वो शम्मा कहां? और ये परवाना कहां हैं।

तन्हाई का मजमा लगा हुआ तेरे बाद।
वीराना जिसे कह सकें, वीराना कहां हैं।।

जाना तो ख़ैर एक न एक दिन सभी को है।
कुछ लोग भूल जाते हैं की जाना कहां है।।

मैं ख़्वाब हूं जो चाहें अभी देख ले मुझे।
कुछ देर बाद मैंने नज़र आना कहां हैं।।

इतनी ज़रा सी बात नहीं सीख सके आप।
किस बात पे हंसना है, मुस्कुराना कहां हैं।।

मायूस तो दुनिया से नहीं लौटने वाले।
वैसे भी यहां रोज़ - रोज़ आना कहां है।।

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12 AUG 2021 AT 3:45

तुम्हारे साथ इतना ख़ूबसूरत वक़्त गुज़रा है।
तुम्हारे बाद हाथों में घड़ी अच्छी नहीं लगती।।

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29 APR 2021 AT 21:34

#system_on_ventilator

ये ना समझिएगा के इस वबा से डर गए हैं।
थकान है सो ज़रा को देर को ठहर गए हैं।

हो इजाज़त तो इक सवाल करें हम वोटर।
शहर के सारे हुक्मरान कहां मर गए हैं?

🙏😢

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10 APR 2021 AT 12:59

ये इक पैग़ाम पहुंचा दो हमारा।
बस उन तक नाम पहुंचा दो हमारा।।

किसी के इश्क़ के नश्शे में हैं हम।
सो हम तक जाम पहुंचा दो हमारा।।

कोई हम पत्थरों की भी तो सुन लो।
की हम तक "राम"पहुंचा दो हमारा।।

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2 APR 2021 AT 19:05

आँखें ही बता देंगी हम बीमार लोग हैं।
बाकी तो ख़ैर आप समझदार लोग हैं।।

कहने को तो ज़िंदा कई हज़ार लोग हैं।
हम जैसे सिर्फ़ दुनिया में दो चार लोग हैं।।

इक वक्त पर खलेगी हमारी कमी उसे।
इस वक्त आस - पास बे-शुमार लोग हैं।।

तुम तंग नहीं आये क्या दिल ओ दिमाग़ से।
ये दोनों बड़े गैर - जिम्मेदार लोग हैं।।

इस मुआमले में यार, किसी की नहीं सुनते।।
सब इश्क में, दुनिया से होनहार लोग हैं।

ये इश्क हमें वैसे ही विरसे में मिल गया।
अव्वल तो बड़े छोटे से फनकार लोग हैं।।

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27 MAR 2021 AT 12:43

उल्फ़त की हरेक रस्म निभाया न करो तुम।
हर बार बुलाने पे यूँ आया न करो तुम।।
मैं खुद से बहुत दूर, चला जाता हूँ कहीं।
इतना मेरे करीब भी आया न करो तुम।।

उल्फ़त - मुहब्बत, love

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25 MAR 2021 AT 0:31

दिल,अब कोई अच्छी सी नौकरी तलाश कर।
ये हिज्र, मुहब्बत की आख़िरी क्लास थी।।

Dil ab koi acchi si naukri talaash kar..
Ye hijra, muhabbat ki akhiri claas thi..

हिज्र - seperation

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24 FEB 2021 AT 12:54

तुम जहां हो, वहां बीनाई नहीं जाएगी।
याने इन आंखों की तन्हाई नहीं जाएगी।।

अब जिसे छोड़ के जाना है चला जाए मुझे।
इस वजह से सुख़न-आराई नहीं जाएगी।।
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Tum jaha'N ho waha'N benaai nahi'N jayegi..
Yaani in aankho'N ki tanhaai nahi'N jayegi..

Ab jise choor ke jaana hai chalaa jaye mujhe..
Is wajah se sukhan - aaraai nahi jaayegi..

बीनाई - दृष्टि , नज़र
सुख़न आराई - शायरी/काव्य रचना

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19 FEB 2021 AT 16:17

आँखों प' उसकी शेर सुना ही नहीं सकते।
हम वक़्त की तस्वीर बना ही नहीं सकते।

वो फूल हो तो चूम लो उस फूल को, मगर।
खुशबू को आप हाथ लगा ही नहीं सकते।।

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18 FEB 2021 AT 23:21

एक दीवार जो सूनी थी सजा दी मैंने।
तेरी हंसती हुई तस्वीर लगा दी मैंने।।

हद से हद गुस्से में इतना ही हुआ है मुझसे।
वो ही तस्वीर बस कमरे से हटा दी मैंने।।

सिर्फ़ इस बात का सुकून रहेगा दिल को।
इश्क़ में एक - एक पाई लुटा दी मैंने।।

आग दोनों तरफ़ लगी थी बराबर लेकिन।
इस मुहब्बत को बहोत ज़्यादा हवा दी मैंने।।

दोस्त इक बताना तो तुम्हें भूल गया।
बात जो कुछ भी छिपानी थी बता दी मैंने।।

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