Madhusudan Singh   (madhureo.com)
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Joined 25 May 2017


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29 MAR AT 22:22

टूट रहे हैं दल सभी,
सपा,बसपा,कांग्रेस और AAP भी,
अगर टूटना ही नियति है,
फिर तो टूटेंगे एक दिन
आप भी।

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29 MAR AT 6:17

हम भी हंसते,मुस्कुरा पाते,
काश! खुद को बच्चा बना पाते।

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22 MAR AT 13:30

आंखों में भरा समंदर फिर भी,
कौन कहता हम उदास बहुत हैं,
होठों पर रखते मुस्कान हर पल,
जमाने में मेरा नाम बहुत है।

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21 MAR AT 22:42



जख्मों भरा दिल फिर भी
चलने को आतुर अंगारों पर पांव मेरा,
कैसे बंद कर दूं उस दरवाजे को?
जिसके उस पार बसा
यादों का गांव मेरा।

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17 MAR AT 13:59

घुसपैठियों को शरणार्थियों का
पर्यायवाची बनाना चाहते हैं कुछ लोग।

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17 MAR AT 9:38

जहां धर्म एवं जातियों में बंटी जनता,
जहां मुफ्त की ख्वाहिश,
मुफ्त के बल पर चलती सरकार,
वहां कुछ भी कहना अतिश्योक्ति नहीं,
अतिश्योक्ति नही कहना उनका,
अबकी बार चार सौ पार।

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16 MAR AT 14:45

अब छह माह वैधता वाला रिचार्ज कूपन नही आता,
जबरदस्ती थोपा जा रहा है मोबाइल डाटा,
गरीब रथ,जनशताब्दी रेल गाड़ियों के,
अब इंजन एवं डब्बे नही बनते,
बातें होती है चहुओर वंदे भारत की,
अब हमारे देश में गरीब नही बसते।

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8 MAR AT 11:21

पता है
मैं कहाँ हूँ,
फिर भी मैं वहाँ हूँ।

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23 FEB AT 16:02

ये रूप
ये सौंदर्य,
ये अहम,
ये गुमान,
कुछ भी नही रहनेवाला,
कर लो जितना करना है जिसके लिए भी,
ये छल ये प्रपंच ये स्वार्थ,
अंततः कोई भी नही
याद रखनेवाला।

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5 FEB AT 10:23

हमारे खुशियों एवं चेहरे पर छाए मुस्कुराहट के जड़ में,
कई हो सकते हैं
परंतु
अपने दुखों एवं मुसीबतों का जिम्मेवार हम स्वयं होते हैं।

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