स्वर्ग एवं नर्क कही और नहीं
बल्कि यहीं है,
जिन्हें जीने आता है
उनके लिए ये धरती स्वर्ग है
एवं जिन्हें जीने नहीं आता
उनके लिए ये धरती ही नर्क है।-
धीरे धीरे सबकुछ बिखरता दिखाई देता है,
मगर कुछ ऐसे लोग भी होते हैं,
जिनका गुरूर उन्हें
कभी झुकने ही नहीं देता।-
उजाड़ रहे आसियाने उन्हें
विनाश नहीं दिखते,
मतलबी और स्वार्थी लोगों को
औरों के आंसू ,दर्द,जज्बात नहीं दिखते।-
सबकुछ छीन ले कोई,
फिर भी उसे कुछ देने को दिल तड़पें,
वो "प्यार" है।
छोड़ जाए बीच मझधार तन्हा कोई,
फिर भी उसके फिक्र में,
दिल तड़पे,
वो "प्यार" है।-
अपनी राह चला था वायु,बदला बदला था जलवायु,
किए समर्पण,कुछ टकराए,कितनों के अस्तित्व मिटाए,
देखा जिन्हें गुमान स्वयं पर,उड़ते जैसे उड़ते रेत,
मगर अडिग जंग करते देखा,
तेज हवा में तन्हा पेड़।
कभी झूमता था मस्ती में,चर्चे उसके थे बस्ती में,
उसका भी परिवार बड़ा था,जिसका वो आधार बना था,
एक एक कर सारे उड़ गए,कुछ टूटे थे टहनी रह गए,
सूखे पत्ते, सूखी डाल,छोड़ गए उनका ये हाल,
रहे साथ वे फिर मुस्काए,डालों पर नव कोपल आए,
झूम रहा वो फिर मस्ती में,मैं भी मस्त मगन बस्ती में,
सुख दुख आते जाते रहते,देता यही हमें संदेश,
जड़ से जुड़ा हुआ मुस्काता,
तेज हवा में तन्हा पेड़।-
खेल सिंहासन का,
बिसात बिछाए बैठा है वो,
वहां राजा,रानी,घोड़ा,हाथी,ऊंट,
दुर्योधन,युधिष्ठिर सब हम ही होंगे,
हम ही करेंगे चीर हरण स्वयं से स्वयं का,
वो पापी नहीं,निष्पापी है,
सिर्फ मुस्कुराएगा,
कुर्सी पर बैठे बैठे,
हमें लड़ाकर,
तो आओ कौन श्रेष्ठ जातियां,कौन श्रेष्ठ धर्म,
फिर एक बार समझ लेते हैं,
फितरत नहीं हमारी एक होने की,
आओ लड़ लेते हैं।-
जब से होश सम्हाला देखा हंसते,रोते लोगों को,
वक्त की आंधी में देखा कई उजड़े हुए दरख़तो को,
चमन उजड़ता फिर खिल जाता,
डूबता सूरज फिर उग जाता,
शोक में डूबे लोगों को बस वक्त यही समझाता है,
धीरे धीरे सब अच्छा हो जाता है।
खोए जब भी गुड्डे तब मैने भी अश्क बहाया है,
प्रेम बहुत कैसे हंसते, गुड्डों ने बहुत रुलाया है,
जब भी रोते समझाते सब,
नए खिलौने ले आते सब,
उससे अच्छा है हंस दे,खोया वापस ना आता है,
धीरे धीरे सब अच्छा हो जाता है।
बचपन से अबतक खोया सबकुछ फिर भी मुस्काते हैं,
रहे नहीं जो समझाते, अब हम सबको समझाते हैं
जब भी हम एकांत में होते,
कैसे कह दें हम ना रोते,
समझाती माँ बात वही फिर राह नया दिखलाता है,
धीरे धीरे सब अच्छा हो जाता है,
धीरे धीरे सब अच्छा हो जाता है।-
कुछ अपने दुख दे जाते हैं कुछ अपने दुख ले जाते हैं,
व्यर्थ जिंदगी बिन अपनों केऔर अपनों का हाल यही है,
समझा जो ये सत्य वही खुश,खुश रहने का राज यही है।
जबसे होश सम्हाला पाया,प्रेम कहीं तो छल इस जग में,
मिलते और बिछड़ते रह गए,जीवन के अनजान सफर में,
महल बनाया खोकर सबकुछ,पाने का कुछ सार यही है,
समझा जो ये सत्य वही खुश,खुश रहने का राज यही है।
मेरे हिस्से थे जितना तुम,सुख,दुख,हानि,लाभ मिला है,
ख्वाबों में भी नहीं सोच उस,पतझड़ को मधुमास मिला है,
नफरत रख तुम या रख प्यार,स्वार्थ भरा मन या नि:स्वार्थ,
मर्जी तेरी मगर समझते सबकुछ तुम अनजान नहीं है,
समझा जो ये सत्य वही खुश,खुश रहने का राज यही है।-
किसी पर भरोसा करना जितना उचित है,
उतना ही खतरनाक है,
किसी पर आँखें बंद करके भरोसा करना।
जहां भरोसा एवं विश्वास,
सच्चे,समर्पित एवं
जान देने वाले लोगों को बढ़ाता है
वहीं आँखें बंद कर के भरोसा करने से
बढ़ जाते हैं धोखा देने एवं जान लेने वाले।-
जिस किसी घर या संस्थान में
चोरों की संख्या बढ़ जाए
तो मेरे समझ से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता,
परन्तु अगर वहां के लोग चोर के साथ साथ
गैर जिम्मेवार एवं लापरवाह भी हो जाएं
फिर उस घर या संस्थान को भगवान ही बचाए।
वैसे जिसे धर्मशाला कहा जाता है
उसका भी कुछ नियम और कानून होता है।-