रात के दामन में क्या है
दिखता तो अंधेरा हैं
कभी चांद तारों के संग
कभी दिखता अकेला है
कभी काफ़ी सन्नाटा, तो
रहता कभी कभी शोर हैं
कोई सोता है गहरी नींद, तो
जागता कोई कोई रहता हैं-
कहीं अंदर पडी़ है रात
शहरों के किसी कोने में
बस नाम के लिए बची है
आवारोंसी झूमतीं है अंधेरे में-
कभी कभी सब कुछ पास होकर भी अधुरा लगता हैं
पुरा होता है मकसद, फिर भी कुछ खलते रहता हैं
कभी अपने, गैर सब तो रहते हैं आसपास, तब भी
किसी खास के यादों का सैलाब खौलता रहता हैं-
पगलाये हुए थे
फूलों की मुहब्बत में
कहीं आवारें भवरें, तो कभी
चंचल तितलियाँ बागों में
-
एक हसरत नहीं होती पूरी,
और टुटता हुआ तारा कहता है
"चलो जल्दी से कुछ मांग लो,
हसरत तुम्हारी नई, जो भी है"-
अरे लहरों सुनो सुनो
कितनी चपल हो तुम
पल में यहाँ, तो पल में वहाँ
कैसे आतीं जाती हो तुम
ताल लय में नृत्य तुम्हारा
मुझे भी सिखा दो जरा
सागर से हो मेरा भी
नाता गहरा तुम सा-
निवडलीस जी 'तू'
ती वाट सोपी नाही...
फक्त सत्य नि सत्यच
असत्याला जे रुचणार नाही...
म्हणतील ते, सोडून दे
सांग ठाम, जमणार नाही...-
सारे ब्रम्हांड में समायें है जो
उन्हें दो पंक्ति में, क्या ही मैं लिखूँ?-
खौलता हुए सागर की, जब लहरें भी हो बागी
कैसे जायेगी पार अब ये नैय्या
ड़रा है माजी, के अब पतवार भी ना हो बागी-