Madhuri Kerkar  
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शब्दची माझे सगेसोयरे
Joined 7 June 2020


शब्दची माझे सगेसोयरे
Joined 7 June 2020
3 SEP AT 13:23

रात के दामन में क्या है
दिखता तो अंधेरा हैं
कभी चांद तारों के संग
कभी दिखता अकेला है

कभी काफ़ी सन्नाटा, तो
रहता कभी कभी शोर हैं
कोई सोता है गहरी नींद, तो
जागता कोई कोई रहता हैं

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22 AUG AT 14:51

कहीं अंदर पडी़ है रात
शहरों के किसी कोने में
बस नाम के लिए बची है
आवारोंसी झूमतीं है अंधेरे में

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21 AUG AT 23:13

दूर मंजिल
पत्थर देगें रास्ता
चल आहिस्ता

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21 AUG AT 22:55

कभी कभी सब कुछ पास होकर भी अधुरा लगता हैं
पुरा होता है मकसद, फिर भी कुछ खलते रहता हैं
कभी अपने, गैर सब तो रहते हैं आसपास, तब भी
किसी खास के यादों का सैलाब खौलता रहता हैं

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20 AUG AT 0:23

पगलाये हुए थे
फूलों की मुहब्बत में
कहीं आवारें भवरें, तो कभी
चंचल तितलियाँ बागों में

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20 AUG AT 0:15

एक हसरत नहीं होती पूरी,
और टुटता हुआ तारा कहता है
"चलो जल्दी से कुछ मांग लो,
हसरत तुम्हारी नई, जो भी है"

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18 AUG AT 19:51

अरे लहरों सुनो सुनो
कितनी चपल हो तुम
पल में यहाँ, तो पल में वहाँ
कैसे आतीं जाती हो तुम
ताल लय में नृत्य तुम्हारा
मुझे भी सिखा दो जरा
सागर से हो मेरा भी
नाता गहरा तुम सा

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18 AUG AT 15:01

निवडलीस जी 'तू'
ती वाट सोपी नाही...

फक्त सत्य नि सत्यच
असत्याला जे रुचणार नाही...

म्हणतील ते, सोडून दे
सांग ठाम, जमणार नाही...

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17 AUG AT 0:12

सारे ब्रम्हांड में समायें है जो
उन्हें दो पंक्ति में, क्या ही मैं लिखूँ?

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16 AUG AT 23:56

खौलता हुए सागर की, जब लहरें भी हो बागी
कैसे जायेगी पार अब ये नैय्या
ड़रा है माजी, के अब पतवार भी ना हो बागी

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