तुझ्या पंढरीत विठ्ठला
संत मेळा गोळा झाला
ज्ञाना, तुका, चोखामेळा
सखू, जनी, नामा आला
ओढ हृदयीच्या भेटीची
उतावीळ वारकरी मन
फुलले वाळवंट भीमेचे
भक्ती सागरात रममाण
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मिलेगा या नही, क्या पता
बहोत कुछ गुम है
ढुँढ रहे हैं कबसे
अभी #खोज_जारी_है
एक बचपन भी हैं
वो हर किसी का
मिलना है फिर उसे
है सपना सभी का-
दिन के ढलते
सब निकल पड़े
अपने घरों की ओर
सबको था पता
अपने अपने घरों का
बस मुझे छोड़ कर।
पैर आगे बढे ही नहीं
वही डटकर खड़े थे
उन्हें भी पता था, के
मेरा कोई घर ही नहीं-
बचपन से जानता था
वो पेड़ इस नदी को
सारे मौसम वो रहता
किनारे पर ही उसके
भारी बारिश के आते ही
समाता गोदी में उसकी
पर उसे डर नहीं लगता कभी
क्योंकी वो जानता था,
नदी उसे माँ जैसे संभालेगी-
असे गु़ंतणे बरे नाही
रात्र सरते, नीज नाही
'भ्रमरा सावर रे जरा'
कमळास मुळी खंत नाही...-
जब भी मैने हार महसूस की,
अथक प्रयास के बाद भी
मेरी आस्था नें ही भरोसा दिया-
तुम्हारी याद में
हर लम्हा बहते
आंसुओं को
रखते हैं रोक कर,
जानते हो क्यों?
क्योंकि, इन आँखों में
तुम जो बसते हो-
काश😔
गलत संगत का असर इतना बुरा था
एक तरफ पुलिस, दुसरी तरफ वही दोस्त
इन सबसे से बचते बचाते
वरूण दौडता रहा, दौडता रहा
आंखों से आसूं लगातार बह रहें थे
पर पोछने वाला कोई न था।
समझा समझा कर थकीं हुयीं माँ भी
अब इस दुनियाँ से विदाई ले चुकीं थी
जब माँ समझाती थी, काश तभी मैंने
सुन लिया होता वरूण सोचता रहा।-