वो इस तरह हमे बहलाता रहा,
हर एक झूठ सच बताता रहा।
उसको महोब्बत इतनी हुई सबसे
सबके लिए ताजमहल बनाता रहा।
जिंदगी इस तरह गुज़ारी उसने
कोई आता रहा कोई जाता रहा।
हवा ने सारे आशियाने तोड़ दिए ,
नन्हा परिंदा घोसला बनाता रहा।
अपनी मजबूरी का वास्ता देकर ,
वो मुझे रात भर जगाता रहा।
गज़ले मेरी पढ़ने को कहा था उसे
वो गीत किसी का गुनगुनाता रहा।
लोग मशगूल थे हक़ीक़त में
एक पागल ख्वाब बनाता रहा।
उसने ज़ख्म कम नहीं किये मेरे
मैं भी अपने ऐश उडाता रहा।
अब उससे तो सच बोल देना
दोस्त , जो तुम्हे निभाता रहा।
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