यूं तन्हा तेरी महफिल में हम जिए जा रहे है,
हर रोज तुझे याद करते-करते जाम पिए जा रहे है,
तेरी निगाहों ने पिलाई है उम्र भर खुमारी रहेगी
इस पैमाने से हम जहर लिए जा रहे है.......
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मैं अगर गीत लिखूं तो तुम गुनगुनाओगे क्या?
किए हुए वादे को निभाओगे क्या?
महफिल से यूं उठकर चले जाना आसान होता है,
ता उम्र हमारी महफिल को सजाओगे क्या?
खुशियों में शामिल होना तुम,
पर मुश्किल सी घड़ी में साथ दे पाओगे क्या?
आसान सी बातों को आसान रहने दो,
तुम उलझी सी बातों को सुलझाओगे क्या?
परेशान जो मैं करू प्यार से,
तो उन परेशानियों को झेल पाओगे क्या?
कीमती तोहफ़े नहीं चाहिए,
जब मिलने आओ तो अपने साथ ढेर सारा वक्त ले आओगे क्या?
आसान नहीं होता बेवजह किसी से इश्क करना,
क्या तुम ऐसा इश्क कर पाओगे क्या?
क्या तुम ऐसा इश्क कर पाओगे क्या?
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शायर लिखते है क्योंकि वो शब्दों से खेलना जानते है,
कोई खेलता है जब शायर के दिल से,
तो वो लफ्जों को कोरे पन्नों पर उतारते है....-
मैंने ख्वाबों में उसे बुलाया नहीं,
फिर भी वो ख्वाबों में आ रहे हैं,
न जाने क्यों बार-बार मुस्कुरा रहे हैं,
ये ख्वाब जब टूट जाते हैं,
मैं आंखे बंद करूं तो फिर भी वो नजर आते हैं,
न जाने क्या असर हुआ है दिल-ओ-दिमाग पर मेरे,
के उनके किस्से हम शायरी में सुनाते हैं......
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खिल उठी मुस्कुराहट जब वो सामने आए,
थामा हाथ उन्होंने तो हम उस किनारे तक चले आए........-
हमने सिर्फ बातों को बिगड़ते देखा है,
कभी खयालों को खयालों से झगड़ते देखा है,
देखा है हमने, टूटना कैसा होता है,
और फिर बिखर-बिखर कर खुद को संवरते देखा है......-
किसी की आंखों के मैख़ाने से जो पी ली है,
तो पैमाने में जो जाम है उसका असर भी नहीं होता,
ये ऐसा जुनून है इश्क का,
इसीलिए तो इस जहां में हर कोई शायर नहीं होता......-
ये कैसा रंग आसमान में छा गया है
शायद अब बरसात का मौसम आ गया है .....
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फूलों को सजाए बैठे हैं इन गेसुओं में,
न जाने अब उनका दीदार कब होगा,
वो आएंगे जब पास मेरे,
तो इन फूलों की महक का सिलसिला होगा....-
कुछ लफ्जों से इश्क कर लेना
तो शायरी भी बन जाएगी
अगर चाहोगे दिल ओ जान से इस कलम को
तो वो तुम्हें एक दिन मशहूर शायर बनाएगी.....-