Madhumayi   (©मधुमयी)
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Joined 21 February 2019


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12 MAY AT 18:59

"और...जहाँ मैं हूँ ...
वहां सांस तो आती है पर जिंदगी कफ़न में लिपटी है
यहां मौत के लिए नहीं ज़रूरत रस्सी और फांसी के फंदे की
समय और भाग्य के हाथों छले जाने के बाद भी
ज़िंदा रहने की ज़िद खुद में एक धीमी मौत है

वहां सीने में ठोंकी गई हैं कुछ कीलें भाग्य के नाम पर
जिनसे रिसती पीड़ा न रोने की सौगंध सी है
होंठों पर मुस्कान में लिपटी इस तरह चिपकी है
कि कुरेदोगे तो खून रिसेगा मगर पीड़ा के बोल नहीं

जहां मैं हूँ
वहां ज़िंदगी तो है..पर ज़िंदगी का मोल नहीं...।"
- मधुमयी

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7 MAY AT 19:14

"द्वंद कहाँ तक पाला जाए
युद्ध कहाँ तक टाला जाए
तू भी राणा का वंशज है
फेंक ! जहाँ तक भाला जाए"
-वाहिद अली वाहिद

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5 MAY AT 21:33

औकात....

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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2 MAY AT 20:14

बीते कुछ दिनों से....

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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19 APR AT 20:47

"चुप की बंदिश लगी है...क्या कीजे ।
बात कुछ अनकही है...क्या कीजे ।।

कौन कहता है...चोट वक़्ती है ,
दर्द ये हर घड़ी है... क्या कीजे ।

बात आती है जब...अना पे कभी ,
कौन कितना सही है...क्या कीजे।

काटिएगा वही जो ...बोया है  ,
बात ये लाज़िमी है...क्या कीजै ।

कुछ सितम वक़्त के तो कुछ क़िस्मत,
दाँव चलती रही है...क्या कीजे ।

जिनके आंगन में चाँद है ग़म का ,
दर्द की चाँदनी है... क्या कीजे ।

इश्क़ की मात और शह क्या खूब ,
फिर  'मधु' हारती है...क्या कीजे ।"

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3 APR AT 22:01

दुनिया की बेरुखी से घबराकर
किताबों में सहारा ढूँढा तो
किताबों के क़िरदार उभरे और
हाथ पकड़ कर ले गए
किताब के उस आख़िरी सफ़हे की
आखिरी लाइन पर...
जहाँ लेखक ने अपने हिसाब से
कहानी ख़त्म कर दी थी...
किरदार मुस्कराए और ले गए
आख़िरी लाइन के आगे की उस दुनिया में
जिसके आगे कभी किसी ने
सोचा भी नहीं कि...
कहानी ख़त्म होने के बाद
क्या होता होगा उन क़िरदारों का..

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20 FEB AT 14:41

लड़के....

(अनुशीर्षक में पढ़ें..)

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7 FEB AT 12:16

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1 FEB AT 13:15


"ससुराल से लौटी कुछ बेटियां
जो नहीं चुनतीं रेल की पटरियां
या नदी की गहराई
वे गलती से चुन लेती हैं
जीवन जीने की उम्मीद
और समाज उनसे
उनके ग़लत चुनाव की कीमत
वसूलता रहता है उनकी
अंतिम सांस तक"

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23 JAN AT 13:00

.......

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