Madhumayi   (©मधुमयी)
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Joined 21 February 2019


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Joined 21 February 2019
25 APR AT 11:34

"प्रेमियों ने जब प्रेमिकाओं का माथा चूमा
प्रेमिकाएं भर उठीं और अधिक प्रेम से
वहीं जब प्रेमिकाओं ने प्रेमियों का माथा चूमा
तो प्रेमी भर उठे प्रेम को निभाने के साहस से
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माथा चूमना केवल प्रेमियों का अधिकार नहीं
प्रेमिकाओं का कर्तव्य भी है..।"

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20 APR AT 17:09

"तज कर दृग जल मैं प्रस्तर सी,
बन शिलाखण्ड भू पर उतरी
शत-शत झंझावातों को सह ,
मैंने पीड़ा को पाला है
वेदना मेरी मधुशाला है.....

नव गान शिलीमुख के सुनकर
था मन निराश फिर भी हँसकर
पतझड़ जैसे सूनेपन को
मैंने वसन्त कर डाला है
वेदना मेरी मधुशाला है....

प्रज्ञा का बोझ बना विप्लव
था विकल हृदय सुन उर का रव
प्रश्नों के तीक्ष्ण सायकों ने
मुझको घायल कर डाला है
वेदना मेरी मधुशाला है....

नीलांचल की छाया गहरी
बन छाई है मुझपर प्रहरी
मैं पागल पथिक बनी फिरती
मन मधु पीकर मतवाला है
वेदना मेरी मधुशाला है....

बाडव-ज्वालायें रोती हैं
पहचान मनुज की खोती हैं
तृष्णा ने राख किया प्रतिक्षण
दुःख ने खंडहर कर डाला है
वेदना मेरी मधुशाला है..."

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19 APR AT 9:10

"बस होंठ सिल लिए हैं मुहब्बत के नाम पर,
ऐसा नहीं कि तुझसे शिक़ायत नहीं रही ।
आबाद है कुर्बानियों से इश्क़ की हर शै
ये वो जहां है जिसमें सियासत नहीं रही ।।"

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16 APR AT 18:36

आमार तुमी....
(मेरी तुम..)

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15 APR AT 18:17

"मन में इतनी प्रतीक्षा हमेशा बचाकर रखो
जहाँ कभी भी लौटकर आया जा सके.."

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13 APR AT 17:42

"कठिन है...
टूटे विश्वास को पुनः जोड़ना
क्योंकि विश्वास जब टूटता है तो
अकेला नहीं टूटता
टूटती हैं वो सारी संवेदनाएं महीन तंतुओं सी
जिनका ताना-बाना ही
हमें किसी से जोड़े रखता है.."

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10 APR AT 19:58

"मेरे आरिज़ हों और तेरी ज़ुल्फ़ के साये हों,
नीम बेहोश पलकों पे तेरे इश्क़ का ख़ुमार हो।

साँसों की गुफ़्तगू साँसों से इस क़दर हो ,
धड़कनें थम जायें बस मुहब्बत बेशुमार हो।।"

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8 APR AT 0:13

जन्मदिन की
असीम शुभकामनाएं
प्यारी मृणाल !
🎂🍫
💐💞

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5 APR AT 13:07

"क्या जीवन इतना नीरस हो जाता है कि
खुद से भी प्रेम करने की इच्छा न रहे.."

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2 APR AT 12:20

"किसी भी स्त्री के लिए सबसे खूबसूरत पल होता है जब वो अपने पसंदीदा पुरुष के सीने से लगकर बेफ़िक्र हो जाए..उसकी पलकें हरकत करना बंद कर दें धड़कनें शांत हो जाएं और साँसें मद्धम...फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वो पुरुष पति है प्रेमी है भाई है या पिता..खूबसूरत बात ये है कि ईश्वर ऐसे पुरुषों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा ही देता है और जीवन में हारी हुई स्त्रियां अपने छले जाने की पीड़ा भूल फिर जीने की कोशिश करने लगती हैं । मन का बंजरपन खत्म होता है और मोह का बीज पड़ जाता है..बुद्धिवादी कहते हैं कि मोह में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि मोह हमें कभी मुक्त नहीं होने देगा पर मोह के बीज से ही तो प्रेम का अंकुर फूटता है और कालांतर में प्रेम के विशाल वटवृक्ष की छांव तले जाने कितने श्रान्त-क्लांत जन छाया पाते हैं। स्त्रियों को अपने सीने से लगाये ऐसे पुरुष सृष्टि की नींव में मजबूती का एक और पत्थर रख रहे होते हैं और अपनी पलकों को बंद कर उस पल को जीती हुई संसार की सबसे कठोर स्त्रियां पिघल उठती हैं। काँटों पर मौसम की आहट हुई प्रेम के नीले पुष्प खिल उठे ..बड़े दिनों बाद ये नीले फूल छली हुई स्त्री ने अपनी वेणी में धारण किये..कहते हैं समय हर घाव भर देता है, कमरे की दीवार घड़ी, डायरी के पन्ने जीवन की खिड़की..वक़्त सब जगह ठहर गया था मानो आज स्त्री को सब लौटा देने को आतुर हो..समय मुस्करा रहा था..स्त्री की ऑंखें नम थीं।"

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