रौनकें होती हैं जिनके होने से घरों में,
मायूस छोड़ जाते हैं वो अक्सर मकानों को
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Madhukar Shankhdhar
(मधुकर शंखधार `भ्रमर`)
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A would be doctor..
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Joined 17 April 2017
7 MAR 2024 AT 12:08
18 APR 2017 AT 11:00
इस दहर में रिश्तों का टूटना कितना आसान
हो गया,
चंद रुपयों की ख़ातिर रिश्तों का दरकना अब आम
हो गया।-
10 APR 2021 AT 10:48
उदासियों में कुछ ख़ुशियाँ बचा लीं हमने,
बड़ी किफ़ायतों से गुज़ारी है ज़िन्दगी हमने
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20 SEP 2020 AT 14:38
हर इक शै को ठुकराता आया हूँ मैं,
अब कुछ भी तो नहीं है हासिल मुझे-
3 FEB 2020 AT 13:39
जहां पहुँचकर आगे के सभी रास्ते ख़त्म हो जाएं ,उन मंज़िलों से न चाहते हुए भी हमें लौट आना होता है।
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12 SEP 2019 AT 21:50
बूढ़े दरख़्त काटकर यहाँ, पौधे लगाए जाते हैं
रख बुजुर्गों को हाशिये पर, घर नए बसाये जाते हैं-
8 AUG 2019 AT 14:27
तेरे बग़ैर
कैसे रह पाएंगे,,
टूट जाएंगे हम,
ख़ुद से ही
रूठ जाएंगे हम
तेरे बग़ैर..
इक गुज़ारिश
इक इल्तज़ा
रुक जाओ न
रुक जाओ न...!!!-
2 AUG 2019 AT 10:12
रंज है मुझको तू मेरे रक़ीबों के क़रीब रहा है,
तेरे हर एक तिल का हिसाब देते सुना है उनको
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8 JUL 2019 AT 15:17
आख़िरी मुलाक़ात भी उनसे इलज़ामों पर ख़त्म हुई,
जहाँ से शुरू हुई कहानी"भ्रमर",आकर वहीं पर ख़त्म हुई-