समेटना चाहती हूँ...बिखरे जज्बातों को
रोकना चाहती हूँ...अश्कों के सेलाबों को..
काश ले जाये मेरे...अरमानों की राख कोई
करना चाहती हूँ दफन मरे हुए एहसासों को..!!-
अपरिमित मैं... सब को दुआँ देती हूँ..!!
🎂1/12
ये चाँद पिघलकर ...कभी गिरता क्यूँ नहीं
हर बार तारा ही टूटकर...बिखरता क्यूँ है..?-
रह जाता भरम हमें भी अपने प्यार का
तू लगकर गले.....ग़र जुदा होता..!!-
अब ये सुबह..सुबह जैसी नहीं होती
मेरी रात अब पहले जैसी नहीं होती..
सो जाती थी गले लग कर जिसके
सांसों की अब वो आवाज़ नहीं होती..
जो कहता था आ सो जा मेरी मोटी
सामने उसकी अब वो आँखे नहीं होती..
सोचा था ना जायेगा छोड़कर कभी
देखने को मेरे पास उसकी कोई तस्वीर नहीं होती..
कहना चाहती हूँ हर हाल दिल का उसे
सुनने को उसके पास फुर्सत नहीं होती..
ठहरते नहीं आँसू आँखों की तह मे अब
पोंछने की लिए किसी की अंगुली नहीं होती..
दें चुकी हर इम्तिहान तेरी महोब्बत मे
अब मुझसे सहन तेरी बेरुखी नहीं होती..
लड़ती हूँ रोज़ अपने भगवान से अब
उसके दर पर भी कोई सुनवाई नही होती..
सर झुकाये बैठी हूँ तेरे दीदार को कब से
लौट आओ ना फ़िर से सहन अब तेरी जुदाई नहीं होती..!!-
लेते हो कितने और इम्तिहान देखते है
सब्र का अपने आज मुक़ाम देखते है
कहाँ तक़ ले जायेगा ये इश्क़ अपना
महोब्बत का अपनी अंजाम देखते है..!!-
किस-किस तरह से इम्तिहान लेते हो
कुछ कह दो ना.. क्यू दूर जा बैठे हो..
अब आँसू भी सूख गए इन आँखों के
लगा लो ना गले से ..क्यू जान लेते हो..
रख दो लबों को अपने होटों पर मेरे
बात-बात पर..क्यू छीन तुम मुस्कान लेते हो..!!
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कुछ इस तरह देती हूँ दलिलें.....ख़ुद को अब मैं,
गुनहगार भी कहती हूँ और निर्दोष भी ठहरा देती हूँ तुम्हे ..!!-
हर रोज़ तेरे वादें को इस तरह निभाती हूँ,
तू बनकर...हर ज़वाब ख़ुद को दें जाती हूँ..!!-
मैंने देखें है....रंग बहुत से ज़िन्दगी के,
अब देखना है तुम कौन सा...'रंग' दिखाते हो..!!
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किस तरह उतरेगा तेरा असर देखते है
तुझे भुलाने की अपनी ज़िद देखते है,
कौन सा नशा , कौन सा पैमाना
जो भुला दे तेरा नाम..वो जाम देखते है..!!-