सान्त्वना से सहर्ष तक
संसार से सन्यास तक
सृजन से संहार तक
स्वयं से सहस्त्र तक
सुबह से साँझ तक
सकल समय संग होत है।-
कृपया मेरी बातों पर ध्यान दें
फ़ाॅलो कर के अनफ़ाॅलो करने वाले
यहाँ आने का कष्ट ही ना... read more
जीवन
है कसौटी
अनोखी है चुनौती
यहाँ मुसीबत ना एकलौती
सबके हिस्से हैं सहस्त्र कोटी
चाहे कोई माँग ले लाख मनौती
पर होता वही जो ईश्वर के पोथी।-
मुझे हाथों में ना हाथ चाहिए
मुझे तो बस, तेरा ही साथ चाहिए,
ना हो दूरियों का एहसास कभी
बस एक ऐसी हसीं मुलाकात चाहिए।-
ये मोहब्बत बिमारी नहीं, ये महामारी है
जो सबको ही लगती, बड़ी मनोहारी है,
इसमें ना ग़लती तुम्हारी है, ना हमारी है
इसके फँस कर सब भूले, दुनियादारी है।-
अगर आपको लगता है
कि मैं सब भूल जाती हूँ,
तो हाँ ! मैं भूल जाती हूँ
अपने काम में व्यस्त हो,
अपने घुटनों व पैरों का दर्द
अपनी कमर की अकड़न,
और शायद से स्वयं को भी
घर-आंगन सहेजने-सँवारने में,
और मैं अक्सर भूल जाती हूँ
अपनी इच्छाँए, अपने सपने,
अपना श्रृंगार, अपना ख्याल
अपनी खुशियाँ, अपने आँसू,
अपना मान-सम्मान व नाम
अपना जीना और मरना भी,
हाँ ! मैं अक्सर भूल जाती हूँ
कि मैं भी तो एक इन्सान हूँ।-
इस जहाँ माँ में के कदमों में ही जन्नत है
वो मेरा रब, मेरी बरकत, मेरी इबादत है।-