Madaari 007   (Madaari)
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कविता और तर्क का प्रदीप और क्षितिज हूँ मैं, जी शायद इसी वजह से मदारी हूँ मैं...
Joined 4 May 2018


कविता और तर्क का प्रदीप और क्षितिज हूँ मैं, जी शायद इसी वजह से मदारी हूँ मैं...
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9 NOV 2020 AT 22:58

Our task is not to seek for love, but merely to seek and find all the barriers within yourself that you have built against it. - Rumi

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7 NOV 2020 AT 23:39

जो बात कहने में भी डर लगता है उसे लेखक लिखता है, और जो कोई नहीं समझ सकता उसे पाठक जीता है।
#मदारी जमूरे का मेल

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5 NOV 2020 AT 10:58

बचपना गवा दिया डिग्रियों की चाह ने
जवानी गवा दी नौकरी की राह में
बहुत महंगी कीमत है साहब
बचा-कुचा सब लगा रहे हैं
रोजी रोटी की टाह मैं

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10 SEP 2020 AT 16:09

सो कहना लाज़िमी न समझा
अब ना उसे खबर है और ना मुझे याद

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10 SEP 2020 AT 14:39

पर कहते कहते रात बीत गई
और निभाते निभाते जिंदगी

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10 SEP 2020 AT 13:02

मन की गठरी छोड़ दे राही
रस्ता तेरा कट जायेगा
धीरे धीरे चलते चलते
सपना ये सच हो जायेगा।
मिलते बिछड़ते राहगीरों से
तू भी मकाम पायेगा
मन की गठरी छोड़ दे राही
रस्ता तेरा कट जायेगा

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26 JUN 2020 AT 23:40

सच झूठ जानने की किसको पड़ी है
जब फॉरवर्ड से आगे कोई मुकाम नहीं है
कोरे (अंध) भरोसे पर चल रही है चर्चाएं
ज्ञान का कोई नामो- निशान नहीं हैं।

कदम कदम पर खड़े हैं
ज्ञान बांटने वाले
फेसबुक वॉट्सएप पर ही मिल गई डिग्रियां
जानने वालों का एहतराम नहीं है ।

सब अंधेरे नगरी और चौपट राजा की कहावत है
यहां गुरु ज्ञानी का कोई स्थान नहीं है।
बंद कर दो जला डालो
अब यहां इनका कोई काम नहीं है ।

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26 JUN 2020 AT 23:25

कि बंद कर, दो जला दो
अब इनका कोई काम नहीं हैं
भक्ति के इस दौर में
ज्ञान का कोई इल्हाम नहीं हैं।
-मदारी

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13 MAY 2020 AT 21:34

फुग्गे जैसा तुम्हारा गुस्सा
सुई की नोंक सा मैं प्रिय
चुभन और आंनद सा मेल प्रिय
मुश्किल नहीं है ये खेल प्रिय

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11 MAY 2020 AT 19:54

देश का मजदूर हाथी हो गया है
जिंदा एक लाख का और मरा सवा लाख का

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