मानवेन्द्र सिंह सिकरवार   (मानवेन्द्र सिंह सिकरवार #Ms)
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नजरअंदाजी तो अदा है हमारी!
अब तुम इन अदाओं पे मरना सीखलो!!
Joined 4 March 2018


नजरअंदाजी तो अदा है हमारी!
अब तुम इन अदाओं पे मरना सीखलो!!
Joined 4 March 2018

अब जब शेर भी पॉजिटिव होगये।
तो पता नही गीदंडो का क्या होगा।।

ह्यय अल्लह राम बचाये,

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हमने तो की कोसिस ,कि उन्हें दे दिया जाये समंदर।
मगर उनकी फूटी किस्मत,उन्हें तालाब ही पसंद आया।।

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इसे दर्द कहूँ या तेरी मासूमियत।
तेरे जिस्म के नही तेरे कायल हैं हम।।

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अधर्म पर धर्म की जीत,
अन्याए पर न्याय की विजय,
बुराई पर अच्छाई की जय जय कार,
यही है दशहरे का त्यौहार ..
विजया दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏

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कुछ लोग पुराने होगये।
कभी थे अपने,मगर क्या करें।
आज बेगाने हो गए।
कभी न समझेंगे ,वो।
हमारी अहमियत।
उन्हें लगता है, कि।
हम जाने अनजाने होगये।

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रंग केसरी ढंग केसरी।
मेरा रंगदो अंग केसरी।।
युद्व भूमि में संग केसरी।
मेरी जंग की ध्वजा केसरी।।
जीयूँ केसरी मरु केसरी।
मेरे लहू की बूंद बूंद केसरी।।
मान केसरी शान केसरी।
माटी का अभिमान केसरी।।
मैं भी केसरी तू भी केसरी।
बनजाओ अपने सभी केसरी।।

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मौजूदा हालात कुछ इस कदर हैं।
न जाने क्यों भटकते दर बदर हैं।।

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कभी थी अनजान। मेरे लिए
अब होगयी पहचान।। मेरे लिए
तू अब मान या न मान। मेरे लिए
तुम बन गयी हो जान।। मेरे लिए

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किसने कब किसे क्या कहा?
ये तो नही पता।
लेकिन पता करने को बहुत कुछ है।।
या क्यूँ न यूँ कहे कि जिंदगी में ।
अता करने को बहुत कुछ है।।
यूँ तो जीना बहुत मुश्किल नही।
लेकिन मरकर जीना कँहा मुश्किल है।।

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जिंदगी की झलक दिखती है।
इन आँखों में शराब झलकती है।।
बिन पिए दे देती हैं इतना नशा।
मैं तो क्या दुनिया भी नशीली लगती है।।
इन्हें रहने दो इन चश्मों के काँचो में।
पता नही कब ढली थी ये इन सांचो में।।
खोल कर ये ऐनक जो देखलो तुम।
पता नही इनमें कब हो जाएंगे हम गुम।।

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