|| गुरु महिमा मैं क्या कहु, आखर कम पड़ जाये ||
|| बस चरणन की धूल से, जीवन सफ़ल हो जाय ||-
सावन
वो हवा मस्तानी सी,
वो फ़िज़ा दिवानी सी,
वो पेड़ों पर जन्मी हरी सी दुनिया,
वो क्षितिज पर आये घने बादलो की सरसराहट,
वो सौदामिनी की रोशनी का उजियारा,
वो रज की सौंधी सौंधी खुशबू,
मन को सुख देने वाली एसी हरियाली कुछ क्षण के लिए आती है,
जब सावन आता है|-
मोहब्बत में नफ़ा नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ से नापा जाता है,
कोई ये बतलाये कि ऐसे मौसम में भीगा कैसे जाता है?
यूँ तो हम क़ैद हैं अपने ही बनाए फ़िरदौस के दायरों में,
बस कोई ये बतलाये हम-सायों से बचा कैसे जाता है?
मुख़्तसर मुतमइन है ज़माने में चंद लोग,
कोई ये बतलाये कि ऐसे लोगों में शामिल हुआ कैसे जाता है?
हर तरफ़ ज़ुल्मत में अम्र-ए-नामुमकिन है "सियाह" जीना,
कोई ये बतलाये कि ऐसे सराब में पानी कैसे पिया जाता है?
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मैं और तुम
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अदम सी ख़्वाहिशें
अधूरा सा ये सफ़र
पूरे से हम
मैं और तुम|
ज़मीनी हकीकतें
फ़िज़ा - ए - ख्वाब
आसमानी फिरदौस
मैं और तुम|
वक्त का मुफ़लिसी लिबास
उस पर इश्क़ेदारी का पैबंद
और एक डगमगाती सी आस
मैं और तुम|
सजदा तुम्हारा
वुज़ू खुदा का
फ़ातिहा हमारा
मैं और तुम|-
सहरा को तुम समंदर के पास ले आये हो,
मेरी ज़िन्दगी में तुम सैलाब ले आये हो |
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आदतन हूँ दर्द में हयात गुज़र करने के,
सो अबके आओ तो सारे दर्द मेरे लिए लेकर आना|-
ये परे है उन तमाम ब्रह्माण्ड में पसरे हुए तारों के,
परे है उद्भव के काले अंधेरे से,.........
(पूरी कविता कैप्शन में पढ़े|)-
ये कौन-सी खिड़की है, ये कौन-सी धूप आयी है,
ये किस रास्ते से रोशनी घर के अंदर आयी है?
ये कौन- सी हवा चली, ये किस महक को लायी है,
ये किसकी ख़ाक है जो तुमने मेरे सर लगायी है?
जगह है ये कौन-सी, ये कौन-सी दीवार है,
ये रंग है या रूप है या अब्र की बौछार है?
ये आसमाँ पे क्या लिखा, ये रेत है या राग है,
जो बुझ गया सो मिट गया, जो जल गया सो पार है|-
मेरे कमरे के एक कोने में रखी हुई,
कठपुतलियाँ |
कई तरह के रंग हैं उनपे,
कई तरह के दुपट्टे ओढ़े हुए,
कुछ सुन्दर बिंदियाँ लगाये हुये,......
(पूरी कविता कैप्शन में पढ़े|)-
तमाम उम्र यूँही बसर कर सकते हैं हम,
तुम्हारी रूह को बोसों से भर सकते हैं हम |-