Maan Singh Suthar   (मानसिंह सुथार)
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Joined 29 October 2021


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20 HOURS AGO

यथार्थ में न सही आधुनिक यंत्रों के माध्यम से
कुछ लोग मिलते हैं अपनत्व का एहसास लिए हुए...!

लगता हैं जैसे अधूरे ख्वाब आँखों में मचल उठे
सफ़र शुरू होता है गुफ्तगू का सिलसिला लिए हुए...!

एक सुकून भरी ज़िन्दगी का किस्सा कुछ यूं हीं
ख्यालों ही ख्यालों में झूठ को सच का गुमान लिए हुए...!

बिखरा हुआ घोंसला संवरने लगता है धीरे धीरे से
एक दिन वही तिनका चुभता है भ्रम का हिसाब लिए हुए...!

छन्न से टूटकर बिखर जाता है ख्वाब हकीकत की चोट से
आवाक से ताकते रह जाता है हाथ में दूरभाष यंत्र लिए हुए...!

बस यही सही आभास है आभासी संसार का सच यही है
प्रतिबंधित सूची में, और कतार में है कोई नया संपर्क लिए हुए...!

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8 MAY AT 21:06

आभासी रिश्ते सदा आभासी ही रहते हैं
हरदम साथ निभाने की झूठी कसमें खाते हैं...!

भावनाओं को धूल में मिलाने की कोशिश में
अवसर मिले तो फिर अपना रंग दिखाते हैं...!

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8 MAY AT 0:06

कुछ कायरों ने इस मिट्टी में
लहू और सिंदूर को जब से बहाया है...!

लहू उबल रहा था उस दिन से रगो में
आज बिखरे सिंदूर का मोल चुकाया हैं...!

कुछ गिद्ध आएंगे सबूत मांगने
इस बार खुद दुश्मन ने चीख चीख कर बताया है...!

रणबाकुरों ने दुश्मन की फिजाओं में
बारूद की गंध को दूर तक उतार कर बताया है....!

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6 MAY AT 23:46

इतना भी न गिरो की कब्र की गहराई कम लगे
जम़ी शर्मिंदा और आसमां भी सर पे कम लगे...!

जरा सा ज़मीर को अंगड़ाई ले लेने दो अभी
ऐसा न हो तुम बदलना चाहों और उम्र कम लगे...!

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28 APR AT 16:59

इस हसीं पल को भी पल में छलनी कर दिया गया
चारों वर्ण शुन्य ,विवश सावित्री सत्यवान को मार दिया गया...!

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22 APR AT 23:59

कांटे भी कुबूल है और फूल भी
रज भी मंजूर हैं और धूल भी....!

वृंदावन में आओ कभी न कभी
फूलों से नाजुक लगेंगे शूल भी....!

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20 APR AT 0:25





हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी ढ़ूढ़े से न मिले एक आदमी....!

चोटी पगड़ी दाढ़ी और टोपी न जाने क्या क्या
बस मिलता नहीं तो एक अदद आदमी...!

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19 APR AT 23:54

कई बार रास्ते बदल के देखे हमने
कहीं न कहीं फिर से कोई मोड़ मिल जाता है...!

कभी कदमों के निशा कभी कदमों की धूल
कभी उन ख्यालों का हिसाब किताब मिल जाता है...!

न चाह कर भी चाहते दूर न हुई इन दिलों से
कभी ख्वाब में तो कभी चांद में अक्स मिल जाता है...!

कई बार रास्ते बदल के देखे हमने
हर बार हर रास्ता कहीं न कहीं उनसे मिल जाता है...!

भला कोई कब तक जुदा रहे अपने नसीब से
बदनसीबो का भी नसीब कभी न कभी मिल जाता है...!

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19 APR AT 15:11

हर रिश्तें की मौत एक न दिन होती हैं
कब तक सहेज कर रखोगे कांच है टूट जाएगा...!

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18 APR AT 23:35

ग़मों के बादशाह है हम इश्क़ में फ़कीर हुए है
टूटे दिल के टुकड़े हैं झोली में जब से वो बेनजीर हुए है...!

मुस्कुराहटों के बगीचे में खुशियों के फूल नहीं खिलते
हर पल पतझड़ है ज़िन्दगी इश्क़ में जब से बीमार हुए है...!

खुशियाँ क्या होती हैं शब्दकोश में शब्द नहीं रहे अब
हर शब्द में दर्द ही दर्द भरा है जब से गम़ बेसुमार हुए हैं...!

अश्रुओं में पीड़ा और ह्रदय में खुद की चिता सुलग रही
जिंदा है शमशान जिन गलियों में हम जाने को मजबूर हुए हैं...!

मेरे गम़ जिन्हें मेरे आगोश में सुकून का एहसास होता हैं
अपनी गम़ों की दुनिया में खुश है बस दुनिया से दूर हुए है...!

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