माधुरी शर्मा   (डॉ. माधुरी शर्मा 'मधु')
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Writer कवयित्री
ख़ामोशी से बनाते रहो पहचान अपनी.....हवाएं खुद गुन-गुनायेगी नाम तुम्हारा
Joined 2 July 2017


Writer कवयित्री
ख़ामोशी से बनाते रहो पहचान अपनी.....हवाएं खुद गुन-गुनायेगी नाम तुम्हारा
Joined 2 July 2017

वो जो सोचते थे
की
हम हैं तो
ये कारवां है
जरा सा
कारवां
आगे क्या बढ़ा
खुद ही तन्हा
रह गए

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पाप हो या
पुण्य हो
चाहे
कर्म
नीति शून्य हो
वो रखता है नज़र
हर बात की
हर वक़्त
और हालात की
जो दे रहे हो.....वो पाओगे
समय के वार से
तुम भी
ना बच पाओगे

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एक वोट की कीमत
एक वोट का मतलब होता है हमको खुद पर विश्वास है,
एक वोट का मतलब होता है हम आम हो करभी खास हैं,
एक वोट का मतलब होता है सोये नही, हम जगे हुए हैं,
एक वोट का मतलब होता है अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं,
एक वोट का मतलब होता है हमको कोई दबा नही सकता,
एक वोट का मतलब होता है कोई प्रलोभन हमे लुभा नही सकता,
एक वोट का मतलब होता है हम हर किसी को शासन नहीं देंगें,
एक वोट का मतलब होता है अपना नेता हम खुद ही चुनेगें,
एक वोट का मतलब होता है अच्छे बुरे की पहचान हमे है,
एक वोट का मतलब होता है धर्म जाति हम सबसे परे है,
एक वोट का मतलब होता है यहां जनता का... जनता के द्वारा जनता के लिए शासन है,
एक वोट का मतलब होता है, यहां संविधान अभी भी कायम है

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मत देना
अधिकार से पहले
कर्तव्य में समाहित होना चाहिए
देश के भविष्य के लिए
हर नागरिक को
इतना तो जागरूक होना चाहिए

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आज के सभ्य समाज को
पढ़ी लिखी बहु चाहिए
नोकरीपेशा बहु चाहिए
घर के सारे काम करने वाली
बहु चाहिए
मगर
बोलने वाली नहीं चाहिए
अपने विचार रखने वाली नहीं चाहिए
उसके द्वारा किया कोई
परिवर्तन समाज को स्वीकार नहीं
उन्हें बहु तो चाहिए
मगर बेटी जैसी नही चाहिए
क्योंकि बेटियां तो जान होती है
और सब कुछ कर के भी
बहु सबके लिए अंजान होती है

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जो जीते हैं
किताबों के जहान में
उन्हें
यात्रा के लिए
किसी और जहान
की जरूरत नहीं पड़ती
किताबे पढ़कर ही
घूम आते हैं
वो देश, विदेश
जान जाते हैं
दुनिया के
कोने कोने के
वेश और परिवेश

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# विश्व पुस्तक दिवस #
ये
इंटरनेट, मोबाइल, सोशल मीडिया
की दुनिया
ये भावनाओ से शून्य
ये दिखावे की दुनिया
ये
नहीं ले सकती कभी जगह
किताबों के संसार की
इन
किताबों में छुपी है
जज्बात, समर्पण
अपनेपन के भावों
की दुनिया
भारतीय संस्कृति के विचारों की दुनिया
हमारे त्योहार और संस्कारों की दुनिया

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आज का हर इंसान
घर अयोध्या समान चाहता है
खुद को भी राम समझता है
भाई भी राम सा चाहता है
चाहे खुद के बीच बाते ही बंद हो
सब खुद के ही मन के षड्यंत्र हो
मगर इल्जाम लगाने को जब
कोई और मिलता नहीं
तो इल्जाम मंथरा पर ही लगाता है
ये कलियुग है जनाब
यहां
मन ही अयोध्या है, मन ही राम
मन ही मंथरा है, मन ही में चारो धाम
पहले खुद के मन को तो पवित्र कर लो
अयोध्या भी यहीं मिलेगी
और यहीं मिल ही जाएंगे राम

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जब
ईश्वर के अस्तित्व पर
संदेह होने लगे
तब
प्यार से एक बच्चे की
प्यार भरी मुस्कान देखना
ईश्वर
उसके रोम रोम में
झलकने लगेगा
और
एहसास होगा कि
ईश्वर
यत्र तत्र सर्वत्र है

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तुम्हारी मनमोहक
सी
इस मुस्कान में
इस कदर
खो गए हैं
हम
की
अब खुद से भी
मिलने की
चाहत नहीं रही

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