M.V.S.Rao Dinesh   (M.V.S.Rao Dinesh)
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Joined 3 April 2018


Joined 3 April 2018
9 JUL 2021 AT 5:33

हम गृहस्थ आश्रम में हैं, हम ऋषियों की सन्तान हैं, हम श्रेष्ठ पिता की श्रेष्ठ सन्तान हैं, हम ऋषि पुत्र हैं, ऋषि गृहस्थ आश्रम में रह कर धर्म से लेकर मोक्ष तक की यात्रा को पूर्ण करते थे, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करते थे । घर-परिवार में रहते हुए अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए हमारे पितर ऋषिगण अपने जीवन का निर्वहन करते थे, पलायनवादी बनकर नहीं ।
–सदगुरु उत्तराधिकारी पूज्य श्री विज्ञानदेव जी महाराज

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8 JUL 2021 AT 22:52

विश्व के विकसित देशों के वैज्ञानिक एवं चिकित्सक भी भारतीय सोच का अनुसरण कर यह मानने लगे हैं कि मांसाहार कैंसर एवं अन्य असाध्य रोगों का कारण होने के साथ-साथ जीवन अवधि को भी छोटा कर रहा है । जबकि शाकाहार शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर बीमारियों से लड़कर जीवन अवधि को बढ़ाता है ।

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6 JUL 2021 AT 11:46

भोजन शरीर के विभिन्न आंतरिक क्रियाओं एवं बाह्य कार्य-कलापों हेतु मात्र ऊर्जा का स्रोत ही नहीं है, अपितु शरीर को स्वस्थ व बलवान रखने का उत्तम साधन होने के साथ-साथ मनोवृत्ति का निर्धारण भी करता है । पारम्परिक सोच एवं कुछ आधुनिक शोध कार्यों से भी यही निष्कर्ष निकला है कि सात्विक एवं शाकाहारी भोजन मानवीय संवेदनाओं का पालनकर्ता होता है, जबकि तामसिक एवं मांसाहारी भोजन हिंसक एवं अमानवीय विचारों का जन्मदाता होता है । शायद इसीलिये भारतीय जीवनशैली में शाकाहारी भोजन को ही प्राथमिकता से अपनाने पर जोर दिया गया है । ऋषि-मुनियों द्वारा भी स्वस्थ्य चित-मन के लिये शाकाहार सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।

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5 JUL 2021 AT 13:18

माँसाहारी प्राणियों के चार रदनक (canine) दाँत होते हैं, जो माँस फाड़ने के अनुकुल होते हैं । इस गण की अनेक जातियों की पादांगुलियाँ दृढ़ एवं तेज नखर (claw) से युक्त होती है । ये नखर शिकार को पकड़ने में सहायक होते हैं । ऐसा कुछ मनुष्यों में नहीं पाया जाता है, इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य स्वाभाविक रूप से शाकाहारी प्राणी है ।

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4 JUL 2021 AT 8:31

शरीर रचना की दृष्टि से मनुष्य शाकाहारियों के अधिक समान हैं, क्योंकि इनकी लंबी आंत होती है, जो अन्य सर्वभक्षियों और मांसाहारियों में नहीं होती हैं !

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2 JUL 2021 AT 12:22


वैदिक धर्म में अहिंसा को सबसे परम धर्म माना गया है । वह हिंसा जो अत्‍याचारी से अपनी रक्षा के लिए न की गई हो, उसे सबसे बड़ा अधर्म माना जाता है और माँस का भोजन इसी प्रकार की हिंसा से प्राप्‍त होता है । इस प्रकार से हिंदुओं के लिए माँसभक्षण सबसे बड़ा पाप माना जाता है। महाभारत में 'माँसभक्षण' की घोर निन्दा की गई है ।

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1 JUL 2021 AT 13:26

नैतिक, स्वास्थ्य, पर्यावरण, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सौंदर्य, आर्थिक और अन्य कारणों से शाकाहार को अपनाया जाना चाहिए !

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30 JUN 2021 AT 9:06

माँस भक्षण एक दानवीय प्रवृत्ति है ! मानवता से दूर–दूर तक इसका नाता नहीं है ! हम स्वयं तय करें कि हम दानव हैं या मानव !

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29 JUN 2021 AT 4:37

माँसाहारी मनुष्य जिव्हा के स्वाद के लिए जिस भी जीव की हत्या करता है, वह जीव(आत्मा) किसी न किसी जन्म में अपना बदला अवश्य लेता है, यही परमात्मा का न्याय है!

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28 JUN 2021 AT 7:22

हम स्वयं के क्षणिक जिव्हा स्वाद के लिए, किसी अन्य जीव की हत्या कर दें, यह कहाँ तक उचित है ??

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