Lucky Saggi   (Lucky Saggi)
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Joined 28 February 2020


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Joined 28 February 2020
14 FEB AT 20:03


तुम्हारी हर एक साँस में बसी है एक दुआ सी,
जीवन के मेरे हर पल को, बनाती हो ख़ुशनुमा सी।
चेहरे पर छाई गुलाबी है तो आँखों में सितारों सी चमक,
मेरी दुनिया तुम्हीं हो, मेरी पहली और आख़िरी मुहब्बत सी।
हर राह में तुम्हारा साथ ही तो है मेरी मंज़िल की निशानी,
ख्वाबों के इस सफ़र में तुम ही हो मेरी साथी।
गम के बादल छाएँ तो तुम्हारी बाँहों में मिले आसरा,
तुम्हीं हो मेरी शाम, तुम्हीं हो मेरी सुबह की किरण सी।
जीवन के इस बाग़ में तुम हो फूलों की महक,
तुम्हारे बिना मेरी हर इक राह रही अधूरी सी ।
वक्त की हर धूप-छाँव हमने साथ में गुजारी,
तुम्हारा हाथ थामे निभती रही हर जिम्मेदारी ।
कहता है ये दिल, तुम हो मेरे सबेरों की रौशनी,
तुम्हारे बिना हर पल है कोई अधूरी सी कहानी।
वेलेंटाइन के दिन यही दुआ है मेरी,
साथ सदा रहे, हाथों में हाथ रहे,
बस तुम ही तो हो दुनियां हमारी।


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20 JAN AT 8:09

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29 JUN 2024 AT 10:10

कुछ भी "गलत" तब तक ही "गलत" लगता है, जब तक कि वो "गलत" कोई दूसरा कर रहा होता है, जैसे ही वो "गलत" आप स्वयं करने लगतें हैं और उस "गलत" से आपको लाभ होने लगता है, तो वह "गलत" फिर आपको "गलत" लगना बंद हो जाता है ....

- लकी सग्गी

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22 JUN 2024 AT 19:25

असली चेहरा जब उसका देखा
रूप तो खूब बदले थे उसने
अक्सर ही दिया था मुझको धोका
ऊपर से हाय कितना बनता था मीठा वो
पर अंदर था ज़हर उसके बहता
पिघल जाता था उसकी बातों से मैं
जब वो प्यार से मुझे अपना कहता
मतलबों के शहर में हर एक मतलबी ही मिला
मैं न जाने क्यों कर लेता हूँ
हर एक पर भरोसा...

- लकी सग्गी


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20 JUN 2024 AT 23:43

गले में जैसे फन्दा फंसना
करते रहे, काम दुनियां के
पर चलता रहा दिल में कहीं,
तेरी यादों के पंछी का पलना
मिलते रहे सफ़र में यूँ तो कई,
पर नामुमकिन रहा आँखों में मेरी,
तेरे अक्स का धुधंला सा पड़ना
क़ाश लौट आते वो दिन कभी,
पर गुज़रे वक़्त को कहाँ आता है,
आज की घड़ियों में बदलना...

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19 JUN 2024 AT 20:07

हालातों के पिंजरे से उन्हें,
जरा आज आजाद किया
पूछ बैठे वे भी आज तो हमसे
हमनें क्या गुनाह किया
बुन तो लिया था तुमने हमें
करने को मुक्कमल इक रोज
पर, इंतजार करता छोड़ हमें
सफ़र तुमनें तमाम किया
तसल्ली देकर मीठी सी तुमनें
गुमराह हमें हर बार किया

- लकी सग्गी




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15 JUN 2024 AT 22:24

कैसे रह गये, हम तन्हा
संभालते तो रहे,
काँच की तरह रिश्ते,
कब टूट कर बिघर गए,
पता न लगा...

जीवन की आपाधापी में
खप कुछ इस क़दर गए,
फिसल गए लम्हें वो भी
जो रखे थे सबसे बचा...

- लकी सग्गी

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15 JUN 2024 AT 7:40

सपने तो संभाले थे बहुत
कुछ हुए थे अधूरे से पूरे,
जाने कहाँ गिर गए बहुत
कुछ को पूरा करने ख़ातिर,
गिरवी रख दिया बहुत
दिन तो फिसलते रहे हाथों से,
रातों ने हमें जगाया बहुत
उम्मीद बंधी रही फिर भी,
इक दिन, सुकून मिलेगा बहुत

- लकी सग्गी


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15 DEC 2023 AT 18:47

कोशिश तो बहुत की, निकालने की,
पर इक फांस सी गले में फंस गई
कहना तो चाहा था बहुत कुछ,
पर हालात देख, जबान ही सिल गई
सुन लेता हूँ इल्ज़ाम उसके चुपचाप आज भी,
ज़िरहें मेरी, उसके गुस्से से डर गईं
कभी तो समझेंगें वो हमको,
उमर इसी उम्मीद में ढल गई
जो कह देना था, उसका वक्त बह गया अब,
गुजरनी थी जो हमपे, वो गुजर गई

- लकी सग्गी


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