खुद को मिटाना पड़ता है कुछ रोटी कमाने के वास्ते,
बहुत कुछ गवाना पड़ता है दो पैसे के वास्ते।
घर छोड़ कर पराया होना होता है,
नई जगह बस कर सब फिर बसाना होता है।
अपनो को छोड़ आना होता है,
गैरों के बीच खुद की एहमियत जतना होता है।
खुद को मिटाना होता है....कुछ रोटी के वास्ते...............
#एक_पिता-
सीख लिया जीना उसने बिना मेरे साथ के,
जो कहते थे तेरे साथ के बिना न चल सकेंगे।
कल तक मैं उसका सुकून था ,
अब जिंदगी भर का रुसवाई।
कल तक जब दर्द उसे होता तो महसूस मुझे होता था,
ये करने वाली आज किसी और के दर्द को महसूस कर रही है..।
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छूट गए वो जो कहते थे कि हमसफर बन सफर में साथ निभाएंगे,
टूट गए हर ख्वाब जो सफर में साथ दिखाए थे।
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कितना पैसे वाला होगा उसका नाइका आशिक ,
सरवा हमारी मोहब्बत को खरीद लिया ।-
कितनी आसानी से आपने झूठ को सहारा बना लिया
और हकीकत को किनारा कर दिया।
रखो दिल पे हाथ और पूछ बैठो दिल से क्या मैंने सहारा दिया?
उसने तो हमेशा जब दुनियां मेरे खिलाफत थी तब साथ दिया।
जब आपने थे रूठे उसने सभी बंधनों से टूटी तो उसने आके उस बंधन को बांध दिया।
जब पूरी दुनिया साजिशें रच रही थी तब उसने उसे नाकाम किया।
जब सबने अविश्वास किया आप पर तब सिर्फ उसी ने आप के विश्वास पे विश्वास किया।
थी सब परिजनों से कितनी दूर उसने कुछ ऐसा रचा खेल की हो गई सभी परिजनों से मेल।
फिर भी जब उसे जरूरत आन पड़ी तो पूरी जग के साथ आपने उसका साथ छोड़ दिया,
छोड़ दिया उसका हाथ जब उसे जरूरत थी साथ।
खुद रो कर उसने हमेशा आपको वजह दी हंसने की, आकर एक बार क्या पोंछा उसके आंसू?
क्या पूछा आपने हाल? की अब न रुलाऊंगी न दूर जाऊंगी किया जो हर प्यार का वादा निभाऊंगी।-
देखो वो लौट के आया मुझे मानने को ,
शायद उसने आजमा लिया जमाने को।।-
*किसी को उजाड़ कर बसे तो क्या बसे....,
किसी को रूला के हंसे तो क्या हंसे।
किसी के साथ बस्ते तो बस्ती होती.....,
किसी को हंसा के हंसते तो हस्ती होती।*-
दर्द देकर पूरा सैलाब भर दिया इतना जख्म दिया कि दिल का हर कतरा रो-रोकर सैलाब में बह गया अब तो बस जख्म है जो सांसो से सिसक सिसक कर निकल रहे हैं।
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कितनी आसानी से आपने झूठ को सहारा बना लिया
और हकीकत को किनारा कर दिया।
रखो दिल पे हाथ और पूछ बैठो दिल से क्या मैंने सहारा दिया?
उसने तो हमेशा जब दुनियां मेरे खिलाफत थी तब साथ दिया।
जब आपने थे रूठे उसने सभी बंधनों से टूटी तो उसने आके उस बंधन को बांध दिया।
जब पूरी दुनिया साजिशें रच रही थी तब उसने उसे नाकाम किया।
जब सबने अविश्वास किया आप पर तब सिर्फ उसी ने आप के विश्वास पे विश्वास किया।
थी सब परिजनों से कितनी दूर उसने कुछ ऐसा रचा खेल की हो गई सभी परिजनों से मेल।
फिर भी जब उसे जरूरत आन पड़ी तो पूरी जग के साथ आपने उसका साथ छोड़ दिया,
छोड़ दिया उसका हाथ जब उसे जरूरत थी साथ।
खुद रो कर उसने हमेशा आपको वजह दी हंसने की, आकर एक बार क्या पोंछा उसके आंसू?
क्या पूछा आपने हाल? की अब न रुलाऊंगी न दूर जाऊंगी किया जो हर प्यार का वादा निभाऊंगी।-