लफ्ज़ 🎶🔯   (Imran Alvi Meeruti)
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Joined 7 July 2018


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19 FEB AT 14:51

वो कुछ दूर तक इस तरह साथ चला था मेरे,
कोई किसी के जनाज़े में चंद क़दम चलता हो जैसे।।

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2 FEB AT 20:20

उस ख़ुदा से बस ये दुआ करता हूँ मैं,
जब भी किसी सफ़र पे चलता हूँ मैं,

ग़र मौत आये तो ज़रा सी मौहलत दे देना,
आख़िरी दफ़ा देख लूँ उसको फिर मरता हूँ मैं।।

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31 JAN AT 9:52

सुना है लोग मज़बूरियों का हवाला देकर मुहब्बत को भी भुला देते है,
मग़र मैंने सिवा तुम्हारे ना सोचा किसी को ना अपनाया किसी को,

बेशक़ यूँ तो तुम मसरूफ़ रहती हो मेरे सिवा हर किसी के साथ,
मग़र मैंने सिवा तुम्हारे ना सुना किसी को ना सुनाया किसी को,

लोग रखते हैं इन आँखों में लाखों तमन्नाएँ और ख्वाहिशों को,
मग़र मैंने सिवा तुम्हारे ना देखा किसी को सजाया किसी को,

यूँ तो शायर अपनी गज़ल और नज़्मों में दुनिया को शामिल करते हैं,
मग़र मैंने सिवा तुम्हारे ना लिखा किसी को ना गुनगुनाया किसी को,

होंगे बहुत आशिक़ जिनके एक ही दिल में कई - कई महबूब रहते हैं,
मग़र मैंने सिवा तुम्हारे ना रखा किसी को ना बसाया किसी को,

आज कल के आशिक़ हर किसी को मनाने और हँसाने में लगे रहते हैं,
मग़र मैंने सिवा तुम्हारे ना मनाया किसी को ना हँसाया किसी को,

बहुत कुछ दिखाने और छुपाने की जैसे रीत बन गई हो अब मुहब्बत में,
मग़र मैंने सिवा तुम्हारे ना दिखाया किसी को ना छुपाया किसी को।।

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10 JAN AT 13:16

वालिदा
तुम कहाँ
चली गई हो,
मैं फिरता हूँ भटकता,
बताओ कहाँ चली गई हो,
हर पल इन आँखों में पानी है रहता,
बहता है और पल पल मुझसे है वो कहता,
पुकारों अपनी 'प्यारी वालिदा' को तुम दिल से,
वो आए तो पूछना उनसे दूर क्यों तुम चली गई हो,
आज कल बहुत मायूस सा रहता हूँ हर पल मैं वालिदा,
कुछ लोग है जो अपना कहकर भी मुझे बेइंतहा रुला रहे हैं,
बेरुख़ी इख़्तियार करके वो मुझको धीरे - धीरे शायद भुला रहे हैं,
ये सब अब सहा नही जाता, मुझें भी ले चलो, जहाँ तुम चली गई हो।।

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7 JAN AT 15:53

यादों की तक़लीफ को तुम नही जान पाओगें,
कितना रोती है ये मासूम रूह तुम नही जान पाओगें,

आप आओगें और कहोगें कि बिछड़ जाओ मुझसे,
पर बिछड़ने की क्या क़ीमत है तुम नही जान पाओगें,

कभी लिख़ने लगता हूँ तो कभी क़लम तोड़ देता हूँ,
आख़िर ऐसा क्यों होता है, तुम नही जान पाओगें,

कुछ किस्से और नग़मों लिखे है तेरी याद में जान,
पढ़ तो सब लोगे मग़र, तुम जान नही पाओगें,

इक रोज़ मेरा जनाज़ा बड़ी ख़ामोशी से उठ जाएगा,
मैं कब दफ़न हो जाऊँगा, तुम नही जान पाओगें।।

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7 JAN AT 9:29

तुम्हारे बाद दुनिया में मेरे पास क्या होगा आख़िर,
बस चंद यादें और तन्हा सा दिल होगा आख़िर,

जो वादें तुमसे किये थे, वो पूरे भी हो जायेंगे,
सबकुछ होकर भी कुछ मेरे पास ना होगा आख़िर,

मेरी तन्हाई और बेबसी देखकर कहेगें लोग भी,
कि इसने किसी को बेइंतिहा चाहा होगा आख़िर,

तुम्ही मेरी ज़िंदगी के सफ़र में मेरे हमसफ़र थे,
तुम्हारे सिवा अब कोई हमसफ़र ना होगा आख़िर,

मेरा सुकून,ज़िंदगी और इबादत सब कुछ तुम हो,
तुम्हारे बाद घर कब्र, बिस्तर कफ़न होगा आखिर,

तुम्हारी ख़ुशी के लिए तुमसे बिछड़ तो जाऊँगा मैं,
तब सिर्फ़ वो लाश होगी, इमरान ना होगा आख़िर,

इस ज़िस्म और रूह में बस तुम शामिल हो जान,
ना आज, ना तुम्हारे बाद कोई मेरा होगा आख़िर।।

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3 JAN AT 1:51

तुम मुझें इस तरह छोड़ रहे हो ना, सोच लेना,
तुम्हारे सिवा कोई नही है मेरा, सोच लेना,

इस ज़िन्दगी से भी नफ़रत हो रही है मुझकों,
तुम मुझको इतना जो सता रहे हो, सोच लेना,

गर मुझसे कोई शिक़ायत है तो झगड़ा कर ले,
गर मैंने गिड़गिड़ाना छोड़ दिया तो, सोच लेना,

आज शोर करता है मेरा ग़म तुमको मनाने के लिए,
गर मै हमेशा के लिए ख़ामोश हो गया तो,सोच लेना,

आज तुम इतना जो दिमाग़ लगा रहे हो इस रिश्ते में,
'क्या होता' गर मैंने दिमाग़ लगाया होता, सोच लेना,

सुनो मैं इस बेरुख़ी से तड़पता हूँ रातों की तन्हाई में,
'क्या होगा' ये तड़प हद से बाहर हो गई तो, सोच लेना,

इक उम्र गुज़ार दी, तुमको अपना बनाने की ख़ातिर,
इसका सिला मुझें ना मिला तो सब ख़त्म, सोच लेना,

के कहते हो कि मेरे होने ना होने से फ़र्क नही पड़ता,
'ज़ाहिदा' मेरा जनाज़ा उठ गया तो, सोच लेना।।

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6 SEP 2024 AT 9:51

"मेरा दर्द"

मेरे दर्द से भरी चीख़ें उन तक पहुँची बहुत,
मैं इस दर्द से मर जाऊँगा उन्हें बताया बहुत,

तुम ही मेरी ज़िंदगी, तुम ही मेरी दुनिया हो,
ये एहसास उन्हें हर लम्हा जताया बहुत,

वो कहते है कि तुमने मेरा इस्तेमाल किया है,
ये बोलके उन्होंने मुझें आग में जलाया बहुत,

मगर उन्होंने मुझे ये कहकर ठुकरा दिया,
तुमने भी तो मुझे इसी तरह रुलाया बहुत,

इश्क़ में बदले की भावना नही होती सनम,
उन्हें ये सब बार - बार हमने समझाया बहुत,

मगर वो है के कुछ अब समझना नही चाहते,
तो ऐसे मिट्टी में उन्होंने मुझें दफनाया बहुत,

मैं भी उनको सुकून देना चाहता हूँ मेरे ख़ुदा,
मेरी रूह को इस मुहब्बत ने सताया बहुत।।

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5 SEP 2024 AT 17:07

"बेहतर है"

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7 JUN 2024 AT 9:01

तू बार - बार यूँ ना दौड़ा कर,
सफ़र की राहें यूँ ना मोड़ा कर,

बागबां फूलों से ही तो जँचता है,
ये प्यारी कलियों को यूँ ना तोड़ा कर,

हर तीर तेरा निशाने पर लगता है,
इन आँखों से तीर यूँ ना छोड़ा कर,

गलती ना होकर भी झुक जाती है,
तू हर बार हाथ यूँ ना जोड़ा कर,

तू ही तो मेरी दिल की धड़कन है,
तू सरेआम भांडा यूँ ना फोड़ा कर,

कोई परेशानी हो तो मुझे भी बतला,
तू मायूसी की चादर यूँ ना ओढ़ा कर।।

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