लफ्ज़ 🎶🔯   (Imran Alvi Meeruti)
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Joined 7 July 2018


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27 OCT 2023 AT 18:01

मैं ख़्वाबों की तामीर कर दूँ अगर,
तेरे नाम ये ज़िन्दगी कर दूँ अगर,

नाराज़ ना होना तू मुझसे सनम,
बीच राह इज़हार कभी कर दूँ अगर,

ये क़ातिल निग़ाहें मुझसे ना चुराना,
मैं रुखसार पे तेरे चुम्बन कर दूँ अगर,

खुश्बू के जैसे तू फ़िज़ा में है महकती,
गुलाबों को तेरे नज़दीक कर दूँ अगर,

क्या करूँ सब्र अब मुझसे होता नही,
सँवर जाऊँ सुकून तुझे कर दूँ अगर,

दिल में मेरे जान बनकर धड़कना,
दिल की धड़कन तुझे कर दूँ अगर।।

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30 SEP 2023 AT 12:52

मैं अपना दर्द ए दिल किसी को बताकर भी क्या करूँ,
वालिदा की कितनी याद आती है, बताकर भी क्या करूँ,

हर रोज नई जिम्मेदारी का बोझ बढ़ जाता है मुझ पर,
उस बोझ से मैं लड़खड़ा जाता हूँ, बताकर भी क्या करूँ,

वालिदा होती तो उनसे अपना हाल ए दिल बयां करता,
वालिद ख़ुद ग़म में है उन्हें कुछ, बताकर भी क्या करूँ,

कम उम्र में ही जवांपन जैसा एहसास हो गया है मुझको,
बहुत समझदार हो गया हूँ अब, बताकर भी क्या करूँ,

वालिदा पे जितना भी लिखूँ वो उनके दर्ज़े तक नही होगा,
मेरी वालिदा थी सबसे अव्वल, बताकर भी क्या करूँ,

कोई बताए मुझे, किसी ने दुनयावी ज़न्नत देखी है क्या,
वालिदा के कदमों में थी वो ज़न्नत, बताकर भी क्या करूँ,

ऊपर से ख़ुश और अंदर से तन्हा - तन्हा सा रहता हूँ मैं,
वालिदा की कमी मुझे रुलाती है, बताकर भी क्या करूँ।।

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23 SEP 2023 AT 17:49

"माँ"

माँ जैसी इक हक़ीक़ी ज़न्नत को तुम क्यों परेशान किया करते हो,
जो नही देखी उस ज़न्नत पे तुम क्यों गुमान किया करते हो,

अगर हो ज़रा सी हया तुमको तो खुद को ज़रा संभालों अब,
करके हर रोज़ माँ की नाफ़रमानी क्यों अज़ान दिया करते हो,

वो माँ ही होती है जो मुफ़लिसी में भी बच्चों को भर पेट खिलाती है,
बुढ़ापे में उसे नज़रअंदाज़ करके बर्बादी का क्यों निशान लिया करते हो,

करते हो हर रोज़ बेवजह के लड़ाई-झगड़े अपनी उस माँ से तुम,
फिर बाहर गैरों में माँ की कसमों की क्यों जुबान दिया करते हो,

वो अमीर ना होकर भी हर अव्वल से अव्वल चीज़ देती है तुमको,
फिर किसी भिखारी से भी बदतर तुम उसे क्यों सामान दिया करते हो,

माँ अगर अव्वल दर्ज़े पर ही रहे तो सबके लिए बेहतर होगा,
फिर उसे सिर्फ मेहमानों के नज़दीक ही क्यों सम्मान दिया करते हो।।

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16 JUN 2023 AT 14:49

"कह नही सकता"

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9 JUN 2023 AT 9:22

मै उसकी मुहब्बत को कभी झूठा भी तो नही कह सकता,
मग़र वो कोई फ़ैसला मेरे हक़ में भी तो नही करती,

मैंने रातों की नींद और दिन का सुकूँ उनके नाम किया है,
मग़र वो मेरी किसी बात पर यकीं भी तो नही करती,

माना के वो भी डरती होगी, मुझसे बिछड़ने की बात से,
मग़र वो मुझसे, मुझ जैसी मोहब्बत भी तो नही करती,

मैं बिछड़ रहा हूँ उससे, उसकी जिम्मेदारियों की ख़ातिर,
क्योंकि वो अपनो के सिवा मेरे लिए कुछ भी तो नही करती,

ख़ाक होगी ज़िन्दगी उसके बगैर ये हकीक़त जान ली मैंने,
क्योंकि ये जुबाँ बिछड़कर जीने की दुआ भी तो नही करती,

इस ज़िन्दगी में तड़पने के बर'अक्स मौत बेहतर है मुर्शिद,
मग़र ये तड़प कब्र को मेरा मुस्तक़बिल भी तो नही करती।।

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9 JUN 2023 AT 8:12

तुमसे बिछड़के मुझमें क्या रहा बाकी है,
थोड़ी सी ज़िन्दगी, थोड़ी धड़कने बाकी है,

मुझसे इश्क़ करके, मुझे बेवफ़ा कहने वाले,
वफ़ाओं की गलियों में मेरा नाम काफ़ी है,

तुम मशरूफ़ हो अपनो की ज़िम्मेदारियों में,
मेरी बेचैन रूह का बस निकलना बाकी है,

मुझें झूठा और नकारा मत समझो जान,
दुनिया से सिर्फ तेरा ही होकर जाना बाकी हैं,

एक रोज तुम्हें भी हकीक़त नज़र आएगी,
अब तो बस मेरे इस सफ़र का रुकना बाकी है,

हो जाऊँगा जल्दी रुख़सत तेरी इस दुनिया से,
फ़कत ज़िंदगी का मौत से सामना बाकी है,

लिखी है जो दास्ताँ हमनें अपनी मुहब्बत की,
उस दास्ताँ को महफ़िल में सुनाना बाकी है।।

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24 MAR 2023 AT 6:02

बेइंतहा मुहब्बत करने वाला शख्स तुम्हें याद नही है,
सिर्फ तुझें दिल में रखने वाला शख्स तुम्हें याद नही है,

दुनियावी इज़्जत की ख़ातिर जिसको छोड़ दिया तुमने,
तेरी ख़ातिर सब कुछ छोड़ने वाला शख्स तुम्हें याद नही है,

फरमाबरदार बेटी बनकर भी क्या हासिल होगा तुझको,
जब तुझसे वफ़ा करने वाला शख्स तुम्हें याद नही है,

अब तो सब कुछ भुलाकर तू बड़े सुकून की नींद सोती है,
तेरी ख़ातिर नींदों को खोने वाला शख्स तुम्हें याद नहीं है,

तुम जो हवाला देती हो, ख़ानदानी इज़्ज़तदारी का उसे,
तुझे अपनी दुनिया समझने वाला शख्स तुम्हें याद नहीं है,

उसे छोड़कर तुझें सभी की खुशियों की परवाह रहती है,
तुझे हर दुआओं में माँगने वाला शख्स तुम्हें याद नहीं है।।

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22 MAR 2023 AT 12:06

तुझे मुहब्बत ख़ुद से भी ज्यादा करता हूँ,
इसलिए जन्नत में मिलने का वादा करता हूँ,

मतलबी दुनिया में तो मिलना मुमकिन नही,
इसलिए जालिम ज़िन्दगी को विदा करता हूँ,

मुझमें दर्द ए जुदाई को सहने की हिम्मत नही,
इसलिए मौत का हो जाने का इरादा करता हूँ,

कभी आये याद मेरी तो मुस्कुराके याद करना,
इसलिए धड़कनों को रूह से जुदा करता हूँ,

मेरी ज़िन्दगी में तुझसे बढ़कर कुछ नही था,
इसलिए ये ज़िन्दगी तुझपर फिदा करता हूँ।।

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17 MAR 2023 AT 19:23

हमारी मुहब्बत की क़सम, वो दे गई है,
क़सम देकर उम्र भर का गम, वो दे गई है,

नही जी पाता उनके बग़ैर, कैसे बताऊँ मैं,
तन्हा अकेले जीने की सज़ा, वो दे गई है,

भागने पर वो वालिदैन का हवाला देती है,
कुछ यूँ जीते जी सज़ा ए मौत, वो दे गई है,

क्या करूँ ऐसा कि वो मेरी बात मान जाए,
मुझे दौर ए इम्तिहां कुछ ऐसा, वो दे गई है,

आख़िरी मुलाक़ात लगी, मुझे पिछली दफ़ा,
मिलकर कुछ ऐसा एहसास, वो दे गई है,

एक पल भी ना जियूँ मैं उसके बगैर "वीर",
अब साँसों से फ़ारिग ज़िन्दगी, वो दे गई है।।

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17 MAR 2023 AT 13:39

मैं तन्हा सा हूँ मग़र, ग़म का दौर नही,
दिल तो रोता है मग़र, कोई शोर नही,

छुपाये फ़िरता हूँ इन नम आँखों को,
वो भी समझेंगे मग़र, कोई जोर नही,

यूँ तो मिलते हैं लाखों लोग दुनिया में,
मैं बीता लम्हा हूँ मग़र, कोई दौर नही,

वादा करके तो लोग मुकर जाते है,
मैं सच्चा वादा हूँ मग़र, कोई और नही,

उसके बग़ैर हूँ मैं किसी लाश की तरह,
रोशन दीया सा हूँ मगर, कोई भौर नही,

दौर ए इम्तिहां से तो मौत ही प्यारी है,
हवा सा बहता हूँ मग़र, कोई तौर नही,

मैं तन्हा सा हूँ मग़र, ग़म का दौर नही,
दिल तो रोता है मग़र, कोई शोर नही।।

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