लफ़्ज़ों का कारवाँ   (बाग़ड़ी...)
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Joined 15 April 2020


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न किसी की आंखों का आंसू न प्यासे का प्याला
न समझना मुझे किसी नारी के सिंदूर का रखवाला।

मेरे पास है अंधभक्तों की भीड़ जोड़ने का हुनर
इसलिए है हर गली-मोहल्ले में मेरा हल्ला-गुल्ला।

झोला लाया था सिर्फ लोकतांत्रिक दांव-पेंच का
भाईयों और बहनों खेल कैसा मैंने रच डाला।

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दुश्मनों पे ना लगा इल्ज़ाम क़त्ल अपने का,
तेरा क़त्ल तेरे आशिक़ बाग़ड़ी ने किया था।

-बाग़ड़ी...

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इतिहास ‼️
बार बार दोहराया गया है,
दोहराया जा रहा है
और
दोहराया
जाएगा,
अफसोस‼️
हाथ
समर्पित प्रेमिकाओं
का
रकीबों ही के साथ
मिलवाया
जाएगा

-



तेरे हो गए हम ये दिल ने कहा है सनम,
जमाना चाहे जुदा करे मिलेंगे हर जनम।

मिट कर भी न होंगे जुदा खाई है कसम,
कसम चाहिए तो ले लो खुदा की कसम।

मोहब्बत है चीज़ जो हार जाएं क्या हम,
चाहत होती है चीज़ क्या ये बताएंगे हम।

मोहब्बत मोहब्बत मोहब्बत है हर क़दम,
मोहब्बत मिटा दे कोई किसी में नहीं दम।

चाहत न होती तो कुछ भी न होता सनम,
मोहब्बत होती न किसी का कोई हमदम।

मोहब्बत से रखते हैं लोग अपना हर क़दम,
अगर चलोे एक क़दम तो चलेंगे एक क़दम।

बेवजह कुछ नहीं वक़्त से हैं खुशी-ओ-ग़म,
वक्त चाहे मिला दे न चाहे तो हिज्र-ओ-ग़म।

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मैं आंसुओं के दरिया में निकला हूं काग़ज़ की नाव पर,
तूफानों से टकरा के दवा लगाएंगे जिंदगी तेरे घाव पर।

तेरी यादें रह रह के दुखा देती है मेरे दिल के ज़ख्मों को
तेरी यादें भूलाने निकला हूं लगा कर जिंदगी दाव पर।

हम उनमें नहीं जो डर जाएं तूफानों का रुख देख कर,
हम रूख बदलेंगे तूफानों का लगा के जिंदगी दाव पर।

मिरा दामन भींगो कर आंसुओं से उसे कुछ भी मिला हो,
ग़म इस बात का है मगर नमक लगा क्यों मेरे घाव पर।

जो मोहब्बत नाम की दुहाई देते हैं वो कब मुंह मोड़ते हैं,
मुंह मोड़ने वाले सिर्फ नमक लगाते हैं प्यार से घाव पर।

मेरे ब'आद कहेंगी 'बाग़ड़ी, दुनिया बेवफा मुझे ग़म नहीं है,
मगर बता देना दरिया पार किया कैसे काग़ज़ की नाव पर।

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सह लूंगा हर तकलीफ़ मगर बोलूंगा नहीं,
जलाना चाहे दफनाना मुंह खोलूंगा नहीं।

जरूरत नहीं बिस्तर बिछोने की‌ मुझको,
कफ़न के सिवाय कुछ भी मांगूंगा नहीं।

साथ आखिरी मंजिल तलक दीजिए मेरा,
वरना कब्र तलक चल कर जाऊंगा नहीं।

आंसुओं की बरसात में भीगो न देना यारो,
गिले कफ़न में शुकून से सो पाऊंगा नहीं ।

मुझ से मोहब्बत न कीजियेगा 'बाग़ड़ी'
मैं गहरी नींद में सो गया तो उठूंगा नहीं।

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अफसाना
न मिलेंगा
दिल-ए-बर्बाद का
किताब
किसी
में।
नज़्म
मगर
किताब में
दिल-ए-बर्बाद की
बेशुमार
होती
है।

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बेशुमार
मोहब्बत में
अधूरी मोहब्बत
भी
शुमार
होती
है,
दास्तान
दिल-ए-बर्बाद की
भी
दीवानों में
शुमार
होती
है।

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मैं
सूरज
की
ओर कुछ कदम
बढ़ाना चाहता हूं,
झूठ
की
ठंडी हवाएं
बर्फ़ न बना दे मुझे
अतः
सचाई के आंच मे
बदन को
तपाना चाहता हूं।

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क्यों वफ़ा
न रास
आई उसे
सोचता ही
रहा
मैं,
अफसोस
ग़म-ए-दिल
तुझे
कोसता ही
रहा
मैं।

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