मेरा दिल का हाल जान जाता है।
एक शख्स है जो मुझसे बेइंताह प्यार करना जानता है।
रूठने की कोशिश भी करू जब भी उसके सामने ।
वह एक शख्स है जो मुझे मनाने की लाख कोशिश करना जानता है।
मेरी आंखो की उदासी पढ़ता है।
मेरी मुस्कुराहट के पीछे उदासी पढ़ता है।
वह एक शख्स है जो मुझसे बेइंताह प्यार करता है।
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Imagination writer ;
All my poetry is imaginary.
Do not compare poetry to m... read more
में खुद को तोड़ सकती हूं।
किसी का भरोसा नहीं तोड़ सकती हूं।
मां बाप की खुशी ही मेरी खुशी थी।
उनकी खुशी के लिए मैं अपनी खुशी लूटा सकती हूं।
नही चाहिए धन दौलत ऐशो आराम की जिंदगी।
मेरी खुशी तो वह है जिसके दुख दर्द में काम आ सकू।
मुझे हर हाल में खुश रखना जानती हूं अपने परिवार को।।
मुझे पैसा नही हर इंसान की खुश रखना जानती हूं ।
बस अपने खुशी के लिए उनका हर फैसला को मानती हूं।-
मैं शून्य हूं और मौन भी ।
मै जिंदा हूं और लाश भी।
मै बेटी हूं और पाप भी ।
मै काबिल हूं और अभिशाप भी।
We want justice ⚖️
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बेटियो का दर्द.......
खुले आसमान की चाहत नहीं है ।
मुझे बांध कर रखो घर के चार दीवारों में।
मुझे Dr ias ips engineer नही बनना है ।
मुझे बंद कर के रखो चार दीवारों में ।
नहीं चाहिए पद और प्रतिष्ठा मान सम्मान ।
मुझे घर के चार दिवारी में रहने दो।
खुले आसमान की चाहत थी मुझे ।
काबिल बनना है समाज के लिए कुछ करना है।
एक डॉक्टर दर्द की दवा लिखती है ।
तकलीफों का निवारण करती है ।
खुद की पहचान बनाती है ।
क्या कसूर है उस बेटी का ...
जिसे दर्दगी से नोचा गया आंखों से खून बहाया गया ।
जीते जी हर हिस्से को काटा गया ।
दर्द में बिलख कर उसे और तरपाया गया ।
उसकी पुकार को बाहर तक सुनाया न गया।
मरने के बाद भी उसे अभी तक कोई इंसाफ न मिला ।
हाथो में पोस्टर लेकर हर कोने में खरे है लोग ।
फिर भी सरकार अभी तक कुछ किया न गाया ।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ सिर्फ कहने को है ।
हर रोज बेटियां मरती है ।
सिर्फ मोंबतिया और पोस्टर हाथों में दिखती है ।
थक गए है समाज की झूठी बनावटी से ।
डर लगता हैं मुझे बेटी होने पर ।
कही अगला शिकार हम न हो जाएं ।
नही नीद आती है अब घर वालो को जिसके घर में बेटियां है ।
डर लगता है ।समाज में बढ़ते कुरीतियों से ।
थक गए है हाथो में मोबातिया लेकर ।
कुछ तो सरकार कभी बेटियों को सूने।
बेटी को पढाने से पहले सुरक्षित तो रखो ।
इंसाफ दो इंसाफ दो ।
लवली की लेखनी ........
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कुछ इस कदर अहसास तुम से जुड़ी हैं।
जैसा वर्षो पुराना अपना याराना है।
बिना जानें हां कही थीं एक डर था कैसा वह होगा।
रिश्ता के धागों में उलझा मेरा मन था।
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अंजान रिश्ते........
अपने ही घर में अब पराया लगने लगता है।
जब एक एक समान अच्छे से पैक करने को बोलता है।
कल तक जिससे हक से बोला करते है।
आज उससे मागंने में भी संकोच करते है।
कितना कुछ बदल जाता हैं बेटी से बहु का सफर में
पीहर से ससुराल तक का सफर कितना कठीन लगने लगता है।
अंजान रिश्तों में बंधना पड़ता है।
सुबह उठने का मन न हो फिर भी उठना पड़ता है ।
कल तक मौज मस्ती में गुजरती थी शाम।
अब हर दिन नए विचारों में उलझना पड़ता है।
अपने आप को सब के सामने बेटी से बहु बन कर रहना पड़ता है।
कोई कुछ बोल ना दे इसलिए कम मुस्कुराना पड़ता है ।
सब के सामने अपने पीहर याद करना पड़ता है ।
जो बातो की दुकान हुआ करती थी।
सब की चेहरे की मुस्कान हुआ करती थी।
अपनो से दूर जाना कितना मुस्कील होता है ।
जब एक बेटी से बहु बनना पड़ता है।
कुछ इस तरह तकदीर हो मेरी ।
जिस घर जाऊं उस घर पीहर जैसा सम्मान मिले।
मां के रुप में सास मिले।
पिता के रूप में ससुर मिले।
बहु नही बेटी जैसा ही सम्मान मिले ।
वैसा ही परिवार मिले।
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बेटियां.....
अंजान रिश्ते में बांध दी जाती है।
घर का दायरे समझा दी जाती है।
दो कुलो में बांध दी जाती है।
फिर भी उससे उसकी पहचान भी छीन जाती हैं।-
थक गाया हूं मैं अपनी तकलीफों से ।
दिल में उठ रहे तूफान की लहरों से।
बोझ बन गई है ज़िंदगी अपने ही विरानों में।
समझ सकता था कोई हाल मेरा।
मैने ही अपना जीवन बरबाद किया अपने हाथो से ।-
में खुद के सवालों में उलझी हूं।
में तन्हा विरानो में उलझी हूं।
नफरत के बाजार में प्यार की तलाश में बैठी हूं।
एक अंजान रिश्ते में जुड़ने से पहले ।
में अपने अतीत से बाहर नहीं निकल पा रही हूं।
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कुछ इस तरह मेरा सपना टूट रहा है।
लगता है समुंदर सुख रहा है।
नाकामी की उलझनों में इस तरह फस गए है।
अंधियारों में अब उजाला नही दिख रहा है ।
कुछ फैसला आचनक घटता है ।
जैसे शिप में मोती फसे होते है।
मैं अपनी गलती पर रोता हूं।
कोई भी यहां सादगी पर नहीं मरता है ।
जो चाहा वह मिलता नही है।
जो मिल रहा है उसकी कद्र नहीं है ।
मेरा अस्तित्व बिखरा पड़ा है।
मैं क्या हूं अब कुछ समझ नहीं आ रहा है
समय मिला तो उसकी कद्र नहीं हुआ ।
अब समय नही है तो बीता कल याद आ रहा है ।
बेवजह वक्त को गुजारा है ।
हर लम्हा याद आता है ।
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