आग लगायेगा किसी के घर में
तो स्वयं भी लपटो में जल जायेगा
जहर जो घोलेगा दूसरों के जीवन में
विषैला तू खुद बन जायेगा
नींद हराम करेगा जो किसी की
सुख चैन तू भी न पायेगा
ये जीवन कर्मो का फेर हैं बंदे
जो देगा दुनियाँ को
वो लौट कर वापस आयेगा-
कुछ अधूरा सा हैं
एक दीवार या खाई सी बीच में हैं
एक एक कदम हम दोनों बढ़ाते
ऊँची दीवार क्या गहरी खाई भी पार कर जाते
मीलों के सफर को पल भर में तय कर जाते
हम सफर थे काश तुम हमराज भी बन पाते
किसी तीसरे के लिए जगह ना होती हम दोनों के बीच
एक दूसरे के साथ हम संपूर्ण हो जाते
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तुझे जीते जीते कितने गंभीर हो गये हम जिंदगी
और एक तू हैं कि मजाक करने से बाज नहीं आयी।-
बहुत अजीब हैं ये जिंदगी
सोचा था उसके बगैर चलेगी नहीं
पर यह भी निकली बड़ी मतलबी
किसी के बगैर रुकी भी नहीं।-
उच्छल बहती नदी सी मैं
वाचाल, अस्थिर, पारदर्शी
शांत ठहरी झील सा तू
मूक, स्थिर और रहस्यमयी-
जब कभी साँसे भारी होने लगती हैं
संसारिक दुखों सें आँखे भरने लगती हैं
जी करता हैं पंचतत्व में विलीन हो जाऊँ
हमेशा के लिये चैन की नींद सो जाऊँ
फिर ये अंतर्मन की आवाज गूंजने लगती हैं
जब जीवन दे नहीं सकते तो जीवन लेने का भी तुझे अधिकार नहीं
जिम्मेदारियों से भाग कर कायर मत बन जाना
कर्मो के लेखे जोखे मे एक पाप और मत बढ़ा जाना
ये सुख दुःख सब कर्मो के फल भोग रहा हैं तू
भेजा हैं तुझे खुदा ने ये मत भूल
चल उठ खड़े हो अपने जीवन का मकसद ढूँढ
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अपने दिल तोड़ा नहीं करते
छोटी सी बात पे मुँह मोड़ा नहीं करते
जो बंधते हैं जन्मों के लिए
पल भर में साथ छोड़ा नहीं करते
और जो ठुकराते हैं सच्चे रिश्तों को
वो इंसान क्या खुदा की भी कद्र नहीं करते।-
काँच की तरह नाज़ुक रिश्तों से एतराज हैं मुझे
सिर्फ रूहानी रिश्तें स्वीकार हैं मुझे-