सर्वधर्म समभाव की चद्दर से जो खुद को ढकते हैं
बस उनको ही हर बार यहाँ पत्थर आ के लगते हैं
सरकार किसी की हो चाहे पर सिस्टम उसका चलता है
धर्म की रक्षा की खातिर जो एक साथ निकलता है
अपनी अपनी सोचोगे तो कोई बच न पायेगा
कटते-बंटते हर दांव में घाव घात के खाएगा
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