कितनी रोशनी है,
फिर भी कितना अंधेरा है।
कितनी नदियां है,
फिर भी कितनी प्यास है।
कितनी अदालतें है,
फिर भी कितना अन्याय है।
कितने ईश्वर है,
फिर भी कितना अधर्म है।
कितनी आज़ादी है,
फिर भी कितने खूंटो से बंधे है हम।|-
उँगलीयाँ टूट गई पत्थर तराशते-तराशते।
और बनी सूरत जब यार की तो ख़रीदार आ गए।-
हमे पता है की तुम कही और के मुसाफिर हो ,
हमारा शहर तो बस यू ही रास्ते में आया था।-
अपनी अच्छाई पर क्या गुरुर करू,
किसी की कहानी में शायद मैं भी गलत हूँ।-
जिंदगी में भागे जा रहे है,कामयाबी की तलाश में।
सुकून से ही दूर जा रहे है सुकून की तलाश में।-
मेरी जिंदगी की तुम एक सुहाना सफर बन जाओ
मैं तुम्हारा लीची तुम मेरी मुज़फ़्फ़रपुर बन जाओ।-
जब शत्रु अदृश्य हो तो छुप जाने मे ही भलाई है।कोरोना ऐसा ही शत्रु है जिससे बचने के लिए उसके सम्पर्क मे न जाएँ घरों मे रहकर खुदको उससे अदृश्य कर ले।
जय हिन्द, जय भारत-
गलियां भी सुनसान , शहर भी सूने ,
क्योंकि बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई है।
अब पता चल रहा है, जिंदगी कितनी महंगी और दौलत कितनी सस्ती हो गई है।-
इतना जरूरी तुम्हारा साथ नहीं था
जितनी जरूरी थी हमारी बातें,
जो हो जाती थी न मिलकर भी
जो समझ ली जाती थी ना कह कर भी।
बातें थम गई हैं जबसे,
शोर तबसे बहुत हो गया है !-
इक बार उस ने मुझ को देखा था मुस्कुरा कर
इतनी तो है हक़ीक़त बाक़ी कहानियाँ हैं...-