!! अखबार वाली फोटो !!
कभी मेरे मामाजी, कभी मामीजी
तो कभी मौसीयां भी कमाल करती हैं
देखो इनमें प्रतिभाएं कितनी
अखबार में फोटो छपती हैं।
मैं ठहरा सीधा - साधा
खास प्रतिभा भी नहीं पाई है
बहुत सोचा फिर उपाय सूझा
अखबार में पैसा देकर फोटो छपवाई है।-
!! सादर विनती !!
आदर्श नगर की शाखा देखो, सोय रही दिन रात
पंच परिवर्तन संघ का सपना, कौन करे ये बात।
एक को कहो दूजा नटे, तीजा मुंह छिपाए
इसी तरह सब साथी जन, नींद की मौज उड़ाए।
पंच परिवर्तन तो दूर है, शाखा ही कौन लगाए
घर पर बैठे स्वयं सेवक, राष्ट्र को कौन जगाए।
जागो साथियों जागो, नियमित शाखा में आओ
एक दूजे के साथ खड़े होकर, शाखा को मजबूत बनाओ।
संघ हुआ है शत वर्षों का, मिलकर उत्सव मनाएं
पंच परिवर्तन नहीं तो एक ही सही, जीवन में इसको अपनाएं।
विनती करता हूं हाथ जोड़, भगवा ध्वज का मान बढ़ाएं
शाखा में नियमित आकर के, ध्वज को हम फहराएं।-
हर किसी के दिल में अपने अपने राज छुपे होते हैं
कोई खास ऐसा होता है, वो केवल उसे ही कहते हैं
वो राज उसके जीवन की कहानी बयां करते हैं
दिल की इन्हीं कहानियों से वो जिंदगी बसर करते हैं-
!! आओ जीवन सार्थक प्रयास करें !!
समय परिवर्तन ऐसा हुआ है, हमें स्वयं भी बदलना होगा
गिरते पड़ते इस ढांचे को, मिलजुलकर संवारना होगा
इसका दोष, उसका दोष, किस किस पर दोष मढ़ते रहेंगे
हिचकोले खाती नैया की, पतवारों को पकड़ना होगा।
समय परिवर्तन की आड़ में हमने, मुंह मोड़ लिया है सबसे
एक सदी बीती है ऐसे, हाथ बांधे देख रहे हैं कबसे
खत्म हो रहा मिलना जुलना, किसी ने रोक रखा हो जैसे
अब ना सुधार किया हमने, सामाजिकता मिट जाएगी जग से।
आओ मिलकर प्रयास करें हम, फिर से प्रेम बढ़ाएं मन में
छोटी छोटी बातों को छोड़कर, अपनापन जगाएं जन में
इतने व्यस्त नहीं है हम, जितना हमने बताया है जग में
पहल करें और आगे बढ़ें, रिश्ते जुड़ जाएंगे जीवन में।-
!! कूचरणी गीत!!
(तर्ज - ठहरे हुए पानी में कंकर ना मार सांवरे..)
रुकेडे पाणी म दगड़ ना मार बावळी
कपड़ा कादे में भर ज्यावेला बावळी। रूकेडे पाणी म....
चारयूं तरफ़ है फुटेडी सड़कां, बिमे पड़या है उंडा उंडा दरडा
के बरो कद के हो ज्यावे, घर सूं निकले दरडे म पड़ ज़्यावे
इससे तो अच्छो है तू घर में ही रह ज्यावे। रूकेडे पाणी म....
आ सारी है मिनखां री माया, कचरे से सगळा नाला डटवाया
फेर बोल्या ब प्रशासन है कोजो और नेताजी दे दिन्यो धोखो
आ मुरखा न अब राम बचावे। रूकेडे पाणी म....
जे बाबो मेरी सुण लेव, मिनखां न थोड़ी अकल दे देव
गळी कुंच्या को ध्यान जे राखे, कचरे से ना नाली डाटे
आ धरती पाछी सुरग बण ज्यावे। रूकेडे पाणी म....-
!! पहली बारिश!!
बारिश के एक लंबे इंतजार के बाद
हताश इंसानों का झुंड जब
सावन के पहले दिन ही
बरसात होते हुए देखता है
तो उनके मन में उठती उमंग की लहरों का
बखान करना आसान नहीं होता है।
असीम कल्पनाएं, अद्भुद खुशी, आंखों की चमक
चेहरे पर कुछ यूं छाती है जो
देखने वाला हर कोई व्यक्ति कह उठता है कि
प्रकृति द्वारा दिए गए उपहार के आगे
भौतिक संसार की वस्तुएं गौण हो जाती है।
ठंडी हवा के झोंके, बरसती बूंदों का संगीत
मन की गहराई में इस तरह से समा जाते हैं जैसे
पानी के इंतजार में टकटकी लगाए चातक को
स्वाति नक्षत्र में बरसती बूंदों का सहारा मिल गया हो।-
!! मानसिक द्वंद !!
गांव मोहल्ला छोड़ चले थे, अपना घर परिवार चलाने को
नौकरी करने गए शहर में, घर में खुशियां लाने को।
घर छूटा, आंगन छूटा, दुनियां के व्यवहार में
छूट गए सब संगी साथी, चार पैसे कमाने में।
अब अकेले बैठे सोच रहा हूं,क्या फिर से गांव जा पाऊंगा
फिर से उन गलियों में घूमकर, दोस्तों संग समय बिता पाऊंगा
खाई थी साथ निभाने की कसमें हमने, क्या उन्हें पूरा कर पाऊंगा
पैसे भी तो जरूरी है जीवन में, क्या रिश्ते भी निभा पाऊंगा।
असमंजस में है जीवन अब तो, कहां दोराहे पर आ खड़ा हुआ
ये भी सही है, वो भी सही है, इसी दुविधा में हूं पड़ा हुआ
एक चुनूं तो दूजी छुटे, दोनों राहें बहुत जरूरी है
रिश्ते नातों संग जिम्मेदारी, ये भी निभानी पूरी है
इसी द्वंद से घिरा मैं देखो, खुद को ढूंढ ना पाता हूं
दुनियां की आपाधापी में, खुद से ही खो जाता हूं।
दो पल ठहर सोचा था तब, ये कैसी स्थितियां बनाई है
रिश्ते परिवार जोड़े रखने को, उनसे ही दूरी बनाई है।-
मानव रूपी जानवरों का कोई अलग शहर नहीं होता है
वो तो अपने बीच में ही बसते हैं
थोड़ा सा बतलाओ और हां जी भाईजी कहो
फिर अपनी कहानी वो खुद ही कहते हैं
ऐंठ कर चलते हैं, दूसरों को खाक समझते हैं
बात बात पर लड़ते हैं और पड़ोसियों को परेशान करते हैं-
!! तन्हाइयां !!
दर्द देती है यादें तेरी, चहरा सामने आ जाता है
लाल ओढ़नी देखूं तब, दिल मेरा भर आता है
वो बातें, वो मुलाकातें, वो किस्से ताजा हो जाते हैं
जब से बिछड़े हैं हम तुमसे, खुद ही खुद से खो जाते हैं-