हर कोई जी नहीं पाता है जीवन अपने हिस्से का
कुछ लोगों के पास समय का अभाव रहता है, तो
कुछ का जीवन, साथी ढूंढने में निकल जाता है।-
जीवन का अर्थ बढ़ते रहना है -
सत्यता के साथ
दृढ़ता के साथ
वीरता के साथ
और
धर्म पर अडिग रहकर-
!!हे करूणानिधान!!
हे ईश्वर विनाश करके फिर से बनाओ इस सृष्टि को
क्रूरता से भरे संसार में नहीं देखना पापवृष्टि को।
पग पग पर लड़ना भीड़ना, प्रेम बचा लेशमात्र नहीं
मुख में राम कृष्ण है बैठे, कर्म दुष्टों से कम नहीं।
समझ ना आए इस दुनियां में क्यों जिए जा रहे हैं लोग
भोग विनाश आता है केवल, मानवता तज रहे लोग।-
!!पहलगांव!!
चुन चुन कर मारो अब, इन देश के गद्दारों को
ताकि रूह तक कांप जाए इनके पनाहगारों की
धरती का ये बोझ हैं और मानवता के भक्षक है
सृष्टि के विनाशक है, खाल खींच लो सालों की
छीन लो इनके हक और निकाल फेंको इनको अपने वतन से
ये मानव नहीं राक्षस है, उठो - जागो और नस्लें मिटा दो गद्दारों की-
!! मायाजाल !!
जोड़तोड़ में लगी है दुनियां
सभी है अपने स्वार्थ में
मैं भी इसी का हिस्सा हूं
मैं भी चला इसी मार्ग में।
थोड़ी दूर चला तब देखा
क्या खोया क्या पाया है
जिसके लिए छोड़ा था सबको
वो तो केवल भ्रम - माया है।-
भरोसा हो तो दोनों तरफ हो
तब तो कुछ बात बने
वरना बोलो "जय सियाराम"
और अपनी अपनी राह चलें-
!! जीमण ही जीवन है !!
पंछी उङ्या परदेश में, करणे शैर सपाटा
म्हारी कतलिया पर पाणी फेरियो, बैठ्या फाड़ा बाका।
आस लगाई सगळा मिलस्या जोधपुर, करस्या खेल तमासो
ना आना इस देश में लाडो, खुद घरका कर लियो परदेश बासो।
मैं सोच्यो 101 को लीफाफो देकर, 500 की थाळी खांवा
मामो म्हारो चत्तर निकल्यो, बोल्यो म्हे तो परदेशा जांवा।
र पागल टींगर लोकू, क्यूं मामी न धीरज बंधायो
बांको खरचो बचाने के चक्कर म, सगळा क जीमण म आडो आयो।-
नहीं हम में कोई अनबन नहीं है
बस इतना है कि अब वो मन नहीं है।
मैं अपने आप को सुलझा रहा हूं
तुम्हे लेकर कोई उलझन नहीं है।
(अज्ञात)-
!! थोड़ा ठहरो श्रीमान !!
जंगल में भटकते लोग देखो, शहरों में भटकते जंगली जीव देखो
कौन किसको डरा रहा है, आंख खोलकर हकीकत देखो
किसी को क्या मिलता है, किसी का घर उजाड़कर देखो
अत्याचार हुआ है जीवों पर, संभालो नहीं तो प्रलय भी देखो
हाहाकार मचेगा हर तरफ, किसका अस्तित्व बचेगा देखो
ईश्वर हिसाब करेगा सबका, कर्मों का फल मिलेगा देखो-
" विकास और प्राकृतिक विनाश"
प्रकृति बचाने को देश की जनता
कर रही भरसक प्रयास सब
पर सत्ताधारी नेता विकास रूपी हथियार से
कर रहे बर्बाद सब।
बीमार होती पीढ़ियां,
बीमार हो रहा समाज है
पेड़ - पौधे, धरती, हवा, पानी
ये प्रकृति का अनमोल उपहार है।
रोक लो इनको अभी भी वक्त है
प्रकृति विनाश करके क्या पाओगे
जब नहीं रहेगा शुद्ध हवा पानी
क्या पैसों से जीवन चलाओगे।-