lokesh dahiyaa  
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Joined 8 March 2020


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Joined 8 March 2020
20 OCT 2021 AT 18:41

कभी उन पलखो का दीदार करे जहां मैकदे में भी बिना पीये जाम झलकते है

जाम वो है जो आंखों से झलकते है।

वरना अकेले अकेले तो कुछ लोग हर शाम पिया करते है।

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29 JUN 2021 AT 20:02

पिछले एहसासो को कैद करने का हुनर आया क्यो नही,
खो गए है अनजान भरे समंदर में ,
मगर 'उसने 'अभी भी मेरी किश्ती डुबाई क्यो नही।

चिंता और पीड़ा की आवाज़ गूंजती है कानो में लेकिन
इसे शांत करने की उसने अभी तक लोरी गाई क्यो नही।

खैर मान लिया सुकून मिलता है लिखने में,
पर इतनी रात के मुहाने पर आज भी नींद आयी क्यो नही।

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10 MAY 2021 AT 20:57

लगा लो आरोप प्रत्यारोप आरोप पीछे भी लगे है।
वो महात्मा पर भी लगे सावरकर और वाजपेयी पर भी।
न गांधी आज बचाएगा न वाजपेयी।
न आरएसएस बचाएगा न वामपंथी।
सर्वधर्म सहिष्णुता बचाएगा मेरे भारत के आगे का वजूद।

वो लोग ओर थे आज दौर ओर है।
बचा लो मिल कर मेरे भारत को पर शायद आज की राजनीति भी मजबूर है।

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5 MAY 2021 AT 22:48

दर्द बहुत होंगे जिंदगी में।
कभी किसी ओर के भी दर्द महसूश कीजिये।

जो आज महफूज़ है जरा बेफिक्र उनका भी हाल एक बार जान लीजिए।

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5 MAY 2021 AT 9:47

वो चैन से सो रहे हैं शहर बेचकर,
कोई सुहाग बचा रही है जेवर बेचकर,
बाप ने उमर गुजार दी एक घरौंदा बनाने में,
बेटा उसकी सांसे खरीद रहा है घर बेचकर,
बर्बाद हो गए कई घर दवा खरीदने में,
कुछ लोगों की तिजोरी भर रही है जहर बेचकर !!

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4 MAY 2021 AT 13:44

सर्वार्थ के ताने बाने बुन रहा है इंसान।
जाने क्यों इस घड़ी में भी आदमी को क्यों लूट रहा इंसान।

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3 MAR 2021 AT 22:43

देखने मे यादे है
पर सोचते सब है।
बचपन ही तो सबसे अच्छा था।

बचपन संजो कर रखे बड़े काम की चीज है।
बच्चो से मिले तो फिर बच्चे ।
बड़ो से मिले तो समझे जवां।

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27 FEB 2021 AT 21:04

बुना था एक ताना बाना ।
सदा साथ रहे जमाना
समय भी था वक्त भी था।
समय बीतने पर बस पुरानी सहेजी
तस्वीर आज बस धुंदली सी दिखती है
सोचता हूं आँखों का वहम है या रिस्ते बदल गए।

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20 DEC 2020 AT 19:51

न जुल्म करो इतना
कि सिर्फ सत्य का कत्ल हो जाये।
रो रहा है आज देश का किसान विकास ओर न्याय
जुल्मोसितम कही सबके लिए सितम न हो जाये

हो रहा है बलात्कार हर सत्य जायज़ मुहिम का
कही सब जायज़ पर असत्य काबिज न हो जाये।

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21 OCT 2020 AT 18:25

तजुर्बे ये भी

तेरे तजुर्बों का तो मैं बचपन से कायल हू।
कितने शहर उजड़ गए। कितने मजदूर घायल हुए।
मगर मैं फिर भी तेरे तजुर्बे का कायल हू।

बीमार बदहाल है देश का हर वर्ग कुछ तो बीमारी का इलाज चाहिए। चाय बनाते बनाते तजुर्बे पे चर्चा होगी हम पाकिस्तान पाकिस्तान करते रहे चीन कब आँख दिखा गलवान कब्जा गया ,
और अब तो बांग्लादेश भी विकास में कोसों आगे निकल गया।

पर में तेरे तजुर्बे का बचपन से कायल हू।
पता भी न चला कि तू कब किसे घायल कर गया।

कब मजदूर, जवान और किसान पलायन कर गए।
मागते थे दो जून की बस रोटी। (tej bahadur yadav ex bsf)
आप तो बड़े चतुर निकले बस तजुर्बा से सबको घायल करते चले गएl

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