फाल्गुन के रंग में रंगने आयी इक सहेली,
इंद्रधनुषीय वर्णो से रंगी जिनकी हथेली।
सुनहरे बालों में उलझ सूरज की किरणे,
स्वर्णिम सुबह का उजाला लाए।
कजरारे नयनों के काजल से भीगकर
दिन ढल कर सुरमई शाम हो जाए।
सुर्ख लाल रंग की अधरे जिसके,
करते बादलों को कत्थई।
गहरी सांस में सराबोर होकर
चलती है पवन पुरवाई।
मुख देख कर पुष्प कमल दल खिले,
आंखे जिसकी भरी हुई मधु की झीलें।
सूरत में पड़ी ओस की बूंदे,
मोती के दाने बनकर करते अठखेली।
सीधी साधी सरल नहीं है,
है इक अनसुलझी पहेली।
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