Lokendra Prakash  
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Joined 8 September 2022


Joined 8 September 2022
20 MAR AT 14:47

फाल्गुन के रंग में रंगने आयी इक सहेली,
इंद्रधनुषीय वर्णो से रंगी जिनकी हथेली।
सुनहरे बालों में उलझ सूरज की किरणे,
स्वर्णिम सुबह का उजाला लाए।
कजरारे नयनों के काजल से भीगकर
दिन ढल कर सुरमई शाम हो जाए।
सुर्ख लाल रंग की अधरे जिसके,
करते बादलों को कत्थई।
गहरी सांस में सराबोर होकर
चलती है पवन पुरवाई।
मुख देख कर पुष्प कमल दल खिले,
आंखे जिसकी भरी हुई मधु की झीलें।
सूरत में पड़ी ओस की बूंदे,
मोती के दाने बनकर करते अठखेली।
सीधी साधी सरल नहीं है,
है इक अनसुलझी पहेली।

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16 FEB AT 13:16

टूटे शुष्क शाख़ पर,
प्रस्फुटित फूल बासंती..
सुसुप्त काया मै,
तरंगित स्मृति तुम्हारी...

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14 FEB AT 22:03

, शीतल सरोवर का पानी।
तुम्हारे फेकें कंकड़ ने, सागर सा प्लावित कर दिया।

हर क्षण पीले पत्तो की भांति, विच्छेदित हो रहे मन को।
वसंत जैसे प्रकटन हो, शुष्क तरू को हरित पर्ण
से आक्षादित कर दिया।।

ऋतु तो अभी उमस का है,मगर तुमने स्नेह वर्षा से।
सुखी माटी के देह को, आद्र कर दिया।।

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28 JAN AT 14:57

मीठी सर्द सी एहसास हो तुम।
शुष्क माटी आसमां को तांके
भीगा जाए तन को; शीतल प्यास हो तुम।
यादें ताज़ा कर दें ये ठंडी हवाएं
फिज़ाओं में घुली बिखरी आभास हो तुम।।

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28 OCT 2023 AT 16:22

तुम्हे जानने की कोशिश में,
मैंने इतना तो जाना ही।

मैंने जो भी जाना,
वो जाना कुछ भी नहीं।।

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24 AUG 2023 AT 23:30

पूछ अगर ले तुमसे, हाल तुम्हारा कभी,
शिकवा न रखना दिल में कहीं।
चाहते हैं गुफ्तगू करें हर रोज़ तुमसे,
मगर मिलते बेहतर बहाने भी नहीं।।

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13 JUN 2023 AT 12:37

तुम्हारे DM में और बारिश में कोई अंतर नहीं।
एक लंबी तपन के बाद आता है,
एक लंबे इंतजार के बाद....

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29 APR 2023 AT 12:05

चौका बेलन नहीं, किताबें पकड़ाओ, अभी ज़रा सा पढ़ लेने दो।

चूल्हे चौके में तो जिंदगी बसर करनी ही है, अभी आसमां छूने दो, आगे बढ़ने दो।।

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13 APR 2023 AT 22:43

थोड़े अल्फ़ाज़ ही तो है,जो मेरे अपने थे।
तुमसे रूबरु क्या हुए, मुझसे बेगाने हो गए।।

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28 FEB 2023 AT 20:01

कुछ/चंद रोज़ और बचे हुए थे पतझड़ को जाने में, मगर....

तेरी कोकिल छवि देखकर बंजर चित्त में भी बुहार आ गई...।।

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