जल रहा था मन, उबल रही थीं साँसें
ऐसे में पुरवाई लाई ये सुहानी बरसाते।
फिर जब यूँ ठंडक पहुंचा जज़्बातों को
तब पर लगे मौसमी कुछ मुलाकातों के।
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टूटे न,इसे संभाल के बुन जा...
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दामन में छुपा ले रात मुझे
अब करनी तुमसे बात मुझे।
दिन के उजाले भाते नहीं
ये कुछ मुझसे बतियाते नहीं।
अब तेरा ही है इंतज़ार मुझे
दामन में छुपा ले रात मुझे।
दिन में जो भानु का पहरा है
ख़्वाब वहीं का वहीं ठहरा है।
चाँद,तारे हंसते व हंसाते मुझे
दामन में छुपा ले रात मुझे।
हर शय की नज़रें साथ सभी
मेरे रातों में फलते ख़्वाब यहीं।-
बहुत समझाया है इस नाज़ुक दिल को
पर ये तो है कि कुछ भी समझता नहीं
जज़्बातों की राहों में ये दोलन है करता
इश्क़-ए-इबारत को ये है कि पढ़ता नहीं
रंग रोगन भी इसको बहुत लगाए हमने
पर वापस ये है उल्टे पाँव पलटता नहीं
हमने समझाया इसे तर्क-ए-हक़ीक़त से
पर ये है कि हाल-ए-दिल समझता नहीं।
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बीते हुए उन लम्हों की हिकायत बन गई
दर्द ए ग़म और खुशी की अदावत हो गई।
कुछ खोया,कुछ पाने की जरूरत पड़ गई
हिज़्र में बसी ज़िंदगी भी क़यामत हो गई।
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तेरी अलकों की छाँव में स्मृति की सांस लेते हैं
मोहब्बत की पेंग बढ़ा बाहों का झूला झूलते हैं।
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ख़ुद को संवार ज़िंदगी संभालनी है
अटल अडिग बन राह निकालनी है।
आत्म दृढ़ता को अद्भुत हवा देनी है
ख़ुद को निखार अपनी राह चलनी है।
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अतीत में डूबा मन, यादों के गलियारे की किरन
बीती बातों का गुच्छा, पीछे शरारतों का बचपन
कभी सुख की राहें, तो कभी दुःख की भावनाएँ
आँख मिचौली करती अतीत में डूबे मन की बातें।
बड़ों को चकमा देना छोटों को बात पर पीट देना
वो बचपन की शरारतों का ऐसा मधुरिम कोना
मां की पहली प्यार दुलार की लहर महसूस करना
यादों की परछाई,अतीत में डूबे मन को थपकी देना।
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विश्वास करो ख़ुद पर,
न अपनों पर न गैरों पर
ख़ुद बख़ुद निखर जाओगे,
किनारे लग जाओगे।
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