ठहर गया वो एक मंजिल की पनाह लिए
चलते रहे हम हमारा ठिकाना कहीं और था-
kya kroge jaan kr
ये सिर्फ़ शायरी है मेरी ज़िन्दगी की कहानी नहीं.
तक़दीर का लिखा भी ज़ाया होने लगा
जब इश्क़ को एहमियत ज़िद्द ने दी..
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अक्सर तेरी यादें आकर बैठ जाती हैं पास मेरे
कैसे कहूं सब से के तन्हा हूं मैं-
ख़ुद में कमी महसूस तो होती होगी न
थोड़े से बाक़ी जो रह गए तुम मुझ में..-
मैं लफ़्ज़ों में बयां करूं तुझको
तू इतना सा किरदार नहीं
और वफाओं की नुमाइश करू
तू इतना भी हकदार नही..-
ग़ैर को अपना समझ कर, यही भूल कर रहे थे हम
हमें आदत थी उस शख़्स की, जिसे इश्क़ कह कर मशहूर कर रहे थे हम।-
वो आएंगे करीब और इश्क़ जतायेंगे
ख़ुद को फरियादी और तुम्हें ख़ुदा बतायेंगे
ग़र हो जाए इश्क़ तो बयां न करना
वो ख़ुद को कर के पत्थर तुम्हें शीशा कर जायेंगे...
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बारिश की बूंदे मेरे शहर को भीगा रही थी
और मेरा ख्वाब मुझे तेरे शहर ले आया....-
अल्फाज़ को रखा है हमने इश्क़ के हिफाज़त में
खामोशी लापरवाह हैं अक्सर रिश्ते खो देतीं हैं...-