मां
मां वो हे उसकी कोई परिभाषा ही नहीं हे,
क्या लिखूं में उस मां के बारेमे मेरे पास कोई शब्द ही नहीं हे,
समुद्र से गहरा हे उसकी प्यार जिस को माप ना मुमकिन ही नहीं हे,
मां ही हे वो जिस का नाम ही इतना मधुर हे,
आंकलन उस मां की क्या करू में वो तो समुद्र से भी गेहरा हे,
धरती पे मां ही एक ऐसी शक्ति हे उसकी सामने पूरा सृष्टि ही झुक जाए ,
उस मां के बारेमे क्या लिखूं में मेरे शब्द ही कम पड़ जाए,
सृष्टि का आधार हे मां,
सृष्टि का विनाश भी हे मां,
प्यार की स्वरूप भी हे मां,
सांती का प्रतीक हे मां,
करुणा जिसकी अर्थ हे,
क्षमा जिसकी कर्म हे,
दया जिसकी धर्म हे,
उग्र जिसकी क्रोध हे,
शक्ति जिसकी अनंत हे,
स्वरूप जिसकी मुग्ध हे,
नबरुप में नवधा मूर्ति हे मां,
क्या लिखूं में उस मां के बारेमे जिसकी महिमा अपरंपार हे,
मां वो हे उसकी कोई परिभाषा ही नहीं हे,
क्या लिखूं में उस मां के बारेमे मेरे पास वो शब्द ही नहीं हे,
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