9 FEB 2019 AT 13:42

तुम ऊंची ज़ात की खाट प्रिये
मैं जुलाहा घर की टाट प्रिये
तुम अरब-ईरान की सैयद हो
मैं कुंजड़ा,दर्जी, भाट प्रिये
तुम सर सैयद की शिरवानी हो
मैं फ़टी लुंगी का फंदा हूँ
तुम हैदराबादी बिरयानी हो
मैं दो रोटी का मंदा हूँ
तुम ऊंची ज़ात घमंडी हो
मैं तो एक ज़ात की गाली हूँ
तुम अशराफों की लफ़्फ़ाज़ी हो
मैं पसमांदा की लाचारी हूँ
अब इसी तरह हम छुप-छुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएंगे
तो एक दिन अहमद रज़ा और थानवी फतवा लेकर आ जाएंगे
सब शरीयत-वरीयत छोड़ मुझे कर देंगे वे ठेलम ठेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

-लेनिन मौदूदी
सुनील जोगी की कविता की पैरोडी

- Lenin Maududi