जरूरी नही रूपवान स्त्री चरित्रवान भी हो...
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कुछ कहानी अपने मन में बुनती जा रही हूं
तुमने जो नही कहा मैं वो भी सुनती जा रहीं हूं
अकेले पन से दूर लेकर ख़्वाब तेरे मैं अपनी ही दुनिया बुनती जा रही हूं
बिखेरा हुआ कुछ अपना समेटती जा रही हूं
लहर सी मैं समंदर से मिलती जा रही हूं
फिर जो नही कहा तुमने न जाने क्यूं मैं सुनती जा रही हूं....-
एक आख़िरी दफा मिलना था तुमसे
क्या मालूम तुम ज़िन्दगी भर के लिए अपना बना लो मुझे...-
अगर मेहबूब की आज़माइश सब्र लाती होगी रिश्ते में
फिर यकीनन शक मुहब्बत का ही हिस्सा होगा...-
नादानियां तेरी हम बर्दाश्त तो कर ले लेकिन,
मन भर गया अगर हमारा तब तुम क्या करोगें....-
बयां होता शायद लफ्ज़ो से तुम्हारी
वो
कलम निभा रहा है सियाही से हमारी....-
रो-रोकर भी जिससे एहसास न हो पाये
मोहब्बत ऐसी किसी दिन तुमको भी हो जाये।।-
इससे बेहतर क्या तोहफ़ा दे पाओगे मुझे तुम
कागज पर उकेर रहे है मोहब्बत तुम्हारी हम....-