मैं चाहता हूँ कि
दुनिया तुम्हें
सबसे अच्छी चीज़ दे।
तुम्हारे जन्मदिन पर
और हमेशा।
हम एक दूसरे को
उतनी बार
नहीं देख पाते
जितना मैं चाहता हूँ,
लेकिन मैं हर दिन
तुम्हारे बारे में सोचता हूँ।
मीलों की दूरी हमें
अलग कर सकती है,
लेकिन हम बहुत सारी
खुशनुमा यादें साझा करते हैं।
जन्मदिन मुबारक हो मेरे खास "भतीजे"
🎂🎂🎂🥮🎂
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माफ़ करने की आदत नही मुझे
अगर इंसाफ ना करे तो कोई बात नही
तेरा मुस्कुराना और आंखो की
गुस्ताखियां ये कोई छोटी बात नही
तीर तेरी नजरो का जिगर में आ लगा
कसूर हमारा भी था कोई बात नही
मेरे बाद तू किसी और का ना हो जाना
अगर हुआ मुझ से जुदा कोई बात नही
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अब ना कोई ख्याल तक रोशनी का ख्वाब-दर-ख्वाब बस अंधेरा-अंधेरा है
मैंने की जमाने से वफा की उम्मीद यारों, सारा का सारा कसूर मेरा है
जमाना तो है मतलब का यार, यारों ये जमाना तो ना तेरा है ना मेरा है
आ हम कहीं दूर निकल चलें यहां से सुना है पश्चिम में अब भी सवेरा है
कुछ रोज से तो कुछ नहीं सूझ रहा है दिल-ओ-दिमाग पे ख्यालों का डेरा है
जाने क्या तलाश है मेरी, जाने कौन मंजिल जाने कहां का हूं, जाने कौन घर मेरा है
क्यों इस दिल को कोई रास नहीं आ रहा गोया इस दिल पे किसी बला का पेहरा है
कितने रोज हुए कोई खबर तक नहीं लेता आखिर कैसे 'लक्स ' से ये राब्ता मेरा है
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थोड़ी सी उम्मीद रख, थोड़ा यक़ीं, थोड़ी नेकी,
अंधेरों में भी कभी रोशन मिलती है ज़िंदगी कहीं
ग़मों की रात लंबी हो दुख के साये गहरे है तो होने दो,
सुबह की पहली किरण में मिलती है नई ज़िंदगी कहीं।
जो थक के बैठ जाए, वो रुक सा जाता है,
चलते रहने की लगन में ही मिलती है ज़िंदगी कहीं।
टूटे हुए ख्वाबों से शिकवा बहुत किया सबने,
जो उन्हें फिर से संजो ले,उसे मिलती है ज़िंदगी कहीं।
सूरज ढलता है शाम को, मगर फिर लौटता भी है,
हर रोज़ एक नई मुस्कान सी मिलती है ज़िंदगी कहीं।
मैंने ग़मों की धूप में भी साया तलाशा है,
जले हुए पत्तों के नीचे भी मिलती है ज़िंदगी कहीं।
कभी टूटे हुए लफ़्ज़ों में, कभी खामोश गीतों में,
बिखरे हुए हर इक रंग में मिलती है ज़िंदगी कहीं।-
वो आज भी सज संवरके खुद को तेैयार करती तो होगी,
बैठकर वही पीपल की छाव मे मेरा इंतजार करती तो होगी!!!
कभी गुलशन मे कभी बहते दरिया के जल मे,
वो मुस्कुराके बार बार मेरा दीदार करती तो होगी
कभी चबाती होगी चुनरी को कभी घुमाती होगी मुंदरी को,
वो पैरो की पायलों से झंकार करती तो होगी!!!
खो जाती होगी वो बीते हुए लम्हो की यादों मे,
वो मेरे गले मे अपनी बाहों के हार करती तो होगी
बह जाता होगा उसकी आँखो का काजल आँसुओ मे,
वो रोकर तन्हाई मे काजल को बेकार करती तो होगी!!
होगी मुझसे उसकी मुलाकात एक दिन जरूर,
वो मेरी मुलाकात पे ऐतबार करती तो होगी!!
माना कि मै फिल्हाल हू उससे बहुत दूर,
मगर "लक्स"वो फिर भी तुझसे बेहद प्यार करती तो होगी!!!!!
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तुझसे मिलने की हो दिली ख्वाहिश
और मैं एक छोटा सा बाग बनाऊँ.
चमेली नरगिस और मोगरों के बीच
में गुलमोहर का दरख़्त लगाऊँ.
छत पे चढ़ कर रोक लूँ
गुज़रता चाँद और थोड़े जुगनू.
तू रात की रानी बन कर आए
और मैं तेरे बालों में गजरा सजाऊँ.
चारों तरफ़ हो गुल लहमी
और तेरे लिए मख़मली गुलाब बिछाऊँ.
कोहनी से टेक लगाकर
मिसरी घोलेगी तू मेरे कानों में.
तू कहेगी फ़िज़ूल सी प्यारी बातें
और मैं बस हाँ में हाँ सिर हिलाऊँ.
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किसी वफादार पुरुष का मिल जाना
एक स्त्री के लिए चारों धाम तीर्थ के फ़ल तुल्य होता है ❤️-
यहाँ सिर्फ शब्दों से महसूस कर लिया जाता है,एक दूसरे की आत्मा को,
फिर भी कितना आसान है न टाईमपास,बोल देना ऑनलाइन प्यार को...
जहाँ किसी के साथ दिल खोल कर, हंसने का मन कर जाये,
कभी मन भारी हो तो बस कुछ शब्दों से,
उसके काँधे पर सर रख के रो लिया जाये...
आपके साथ जो आपके मुस्कुराने की वजह बनना चाहता है,
जो कुछ इमोजी के ज़रिये आपको हॅंसाना चाहता है...
जिसके ख्याल ही चेहरे पर बेवजह मुस्कुराहट लाते है,
जिसके कुछ शब्द ही आपको सुकून दे जाते है...
कभी कभी उसकी अनदेखी दिल को दुखा देती है,
फिर वो अपने शब्दों से ही मना लेती है...
उसके तस्वीरों से उतनी ही खुशी मिलती है,
जितनी किसी के साथ वक्त गुजर कर मिलती है...
अलग होने पर इंसान वैसे ही टूट जाता है,
जैसे पास का कोई दूसरा छोड़कर चला जाता है...
ये मन के रिश्ते है जनाब,
सबको थोड़ी न समझ आएंगे...♥️🥺-
"ये आँखें कुछ कहती हैं..."
हर लफ़्ज़ पे क्यों भीग जाती हैं आँखें,
क्या दिल की सदा सुनाती हैं आँखें?
कमज़ोर नहीं, बस थकी सी हैं शायद,
हर रोज़ कोई जंग लड़ती हैं आँखें।
जो बात लबों तक नहीं आ सकी है,
वो ख़ामोशी में बयाँ करती हैं आँखें।
कभी यादों की बारिश में भीगीं,
कभी ख़्वाबों में जलती हैं आँखें।
दिल की दीवारों पे जो नाम लिखा था,
अब उन निशानों को ढूँढती हैं आँखें।
कभी तू था, तो चमकती थीं जैसे,
अब बस अंधेरों में पलती हैं आँखें।
हर मोड़ पे रुक के कुछ सोचती हैं,
जैसे कोई वादा निभाती हैं आँखें।
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बरसाने की हवाओं में कोई गीत घुला है,
राधा के जनम का आज फिर दीप जला है।_
_कुंज गलिन में बँसी की सदा गूँज रही है,
श्याम के अधर पे राधा का नाम खुला है।_
_चरणों की धूल से चाँदनी भी शरमाए,
प्रेम की परिभाषा आज फिर से ढला है।_
_नेत्रों में विरह, मन में अनुराग की गहराई,
हर भाव में राधा का ही रूप पला है।_
_कृष्ण बिना अधूरी थी, फिर भी पूर्णता की छाया,
उस राधा के जनम पे ब्रज धाम हुलस चला है।_
_ना राज, ना वैभव, ना कोई स्वर्ण मुकुट,
बस प्रेम की मूरत — यही राधा का किला है।_
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