Lavkesh Mishra   (Lavkesh Mishra)
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Joined 28 April 2019


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12 HOURS AGO

मुझे तैरने दे या बहना सिखा दे,
मुझे अपनी रज़ा में तू रहना सिखा दे ।

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14 APR AT 8:54

ना होश में हूँ मैं, ना बेहोश में हूँ मैं,
बहुत सोच समझकर ख़ामोश हूँ मैं ।

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24 JAN AT 18:54

दुखती रग पर उगलीं रखकर, पूछ रहे हो कैसे हो,
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी, दुनिया चाहे जैसी हो,
एक तरफ़ मैं बिल्कुल तन्हा, एक तरफ़ दुनिया सारी।
अब तो जंग छिड़ेगी खुलकर, ऐसी हो या वैसी हो।
जलते रहना चलते रहना, तो उसकी मजबूरी है।
सूरज ने ये कब चाहा था, कि उसकी क़िस्मत ऐसी हो।
मुझको पार लगाने वाले, जाओ तुम तो पार लगो।
मैं तुमको भी ले डुबूँगा, कश्ती चाहे जैसी हो।
ऊपर वाले अपनी जन्नत, और किसी को दे देना,
मैं तो अपने दोज़ख में खुश हूँ, जन्नत चाहे जैसी हो।

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23 JAN AT 13:06

बहुत कठिन है सफ़र,
थोड़ी दूर साथ चलो।
कठिन है राह गुज़र,
थोड़ी दूर साथ चलो।
तमाम उम्र कोई कहा साथ देता है,
ये जानता हूँ मगर,
थोड़ी दूर साथ चलो।

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11 JAN AT 15:24

वहम और अहम्
दोनों ही लोगो को लेकर ही डूबता है।

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1 JAN AT 6:09

‘अनुमान’ मन की कल्पना है,
‘अनुभव’ ज़िन्दगी का सबक़ ।

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18 DEC 2023 AT 19:06

Everything will be okay in the end,
if it’s not okay then it’s not the end.

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14 DEC 2023 AT 23:29

जश्न हो तो यू ना सोना चाहिए,
कुछ न कुछ बस्ती में होना चाहिए,
जिनको हो मालूम आंसू की क़ीमत,
उनके आगे तो खुलके रोना चाहिए।

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17 NOV 2023 AT 18:53

लोग कहते है कि
वक्त सारे घाव भर देता है,
लेकिन वे शायद यह भूल जाते है कि
किताबों पर पड़ी धूल,
किताबों की कहानियाँ नहीं बदल सकती ।

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14 OCT 2023 AT 21:46

न समझ था तो ये ख़्वाहिश थी कुछ समझूँ तुझे,
जब समझ आया तो यह समझा कुछ समझूँ नहीं,
कौन है गुलशन जिस गुलशन तू रौशन नहीं,
बिन्दु कहता है कि मैं हूँ जब जुदा दरिया से हूँ,
मिल गया दरिया से फिर कहता है, मैं कुछ हूँ नहीं।

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