कभी अपनी मन की बात को कहते हुए,
कभी बहुत सारी बातों को, उदासियों को
छुपाते हुए,
कभी किसी को सुनते हुए,
फिर अपने रंग में रंगते हुए,,
फिर ये नतीजे पर पहुंचते हुए की,,
कोई कितना भी तुम्हारा हो क्योँ ना जाएं,,
अंत में फिर अपने आपको हर बात के तसल्ली देते हुए,,
आगे बढ़ रही हैँ लथु का मन,,,
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