"कौन है पिता?"
स्त्री के निर्माण में
पहला साझेदार है पिता।
स्त्री के जीवन में
पहले पुरुष की दस्तक है पिता।
स्त्री के अल्हड़पन में
देखे सपनों का रक्षक है पिता।
स्त्री की पहली जिद
पूरी करने वाला पहला पुरुष है पिता।
पराए घर में भी जो ताकत साथचले
वही ताकतवर व्यक्तित्व है पिता।
भीड़ में "चल अकेले"
कहने वाला मजबूत स्वर है पिता।
सिखाकर कलाबाजियां जटिल जीवन की
वंशज को पोषित करने वाला वंशज है पिता।
जीवन भर की कमाई अगली पीढ़ी को
एक हस्ताक्षर से हस्तांतरित
कर देने वाली एक पीढ़ी है पिता।
कठिनाइयों को मुस्कुराहट में छिपाकर
निरन्तर गतिमान एक मौन है पिता।
कौन है पिता? @ललिता
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बड़ा ही आसान था सफर में
गैरों को अपना बना लेना।
अपनों को अपना बनाने में
ग्रहों की दशा खराब हो गई।
@ललिता-
हवाओं का रुख जिस तरफ होता है,,,,
खुशबू फूलों की उस तरफ ही बहती है,,,,
नादान हैं वो परिंदे हवा के विपरीत उड़ रहे हैं
खबर नहीं उन्हें उल्टी दिशा में थकान ही मिलती है।
@ललिता
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ठहराव वहीं पर होना चाहिए जहां उपस्थिति महत्वपूर्ण हो।
जहां विकल्प उपलब्ध हो वहां से चले जाना ही उपयुक्त है।
@ललिता-
"*मान तुम बने रहो*"
कलम कभी रुके नहीं,,,,
पक्ष विपक्ष से झुको नहीं,,,
निष्पक्ष तुम सदा रहो,,
निर्भीक तुम डटे रहो।
लोकतंत्र की आवाज़ हो
स्वतंत्रत तुम,,सदा रहो।
पत्रकार हो जो पत्रकारिता का
मान तुम बने रहो।
बदल रहा है युग सदा,
बदल रही है चेतना,,,
बदलते हर एक दौर को,
देख आ रहे हो तुम।
साक्ष तुम, प्रमाण तुम,
आमजन का प्राण तुम।
लिखो नई तुम चेतना,
लिखो नई नित वेदना,,,,,,
देश का आधार हो,,,
स्वतंत्रत हो,,सदा रहो।
पत्रकार हो जो पत्रकारिता का
मान तुम बने रहो।
@ललिता-
रंगमंच
पल पल जीवन रंगमंच,
रचता हर क्षण अभिग्रंथ।
पीड़ा आनंद के साथ ही चलती,
मधुर मुस्कान है दर्द को छलती।
अश्रु नयनों में सुख के या दुःख के
मधुप बनाता रहता मकरंद।
जीवन यह कैसा रंगमंच
रचता हर क्षण अभिग्रंथ।
ललिता
हल्द्वानी उत्तराखंड
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रंगों की बरसात हो
अपनों का सा साथ हो
स्नेह मिलन के गीतों से
शुभ दिन की शुरुआत हो!
रंगों सा उल्लास हो
उपवन सा सुवास हो
होली मिलन के गीतों सा
जीवन में उत्साह हो!
रंग, प्रेम, उत्साह, उमंग के त्यौहार होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!
ललिता
हल्द्वानी उत्तराखंड
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*ऐसा मुझको वर दो मां*
कलम की देवी दो वरदान
हर लो मन का सब आज्ञान
बुद्धि विवेक सबल दो मां
शब्द रचूं जो बने अभिज्ञान।
तमस हृदय को कर आलोकित
सरल सुबोध उर रहे सुगंधित
सात सुरों सा जीवन दो मां
शब्द रचूं जो बने महान।
सौंदर्य सृजन का तुझसे मांगू
अंतस वसंत सा तुझसे मांगू
ऐसा मुझको वर दो मां
शब्द रचूं जो बने विज्ञान।
प्रभा रवि सी शब्दों में हो
विभा शशि सी अर्थों में हो
श्रद्धा का अनुराग दो मां
शब्द रचूं जो बने विधान। @ललिता
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(वर दो मां)
तिमिर हृदय में रहे उजाला
ऐसा कोई वर दो मां।
भव सागर से मिले किनारा
ऐसा कोई वर दो मां।
कितना भी दुर्लभ जीवन हो
आशा का दीपक जला रहे ।
पथरीली हो राह भले ही
मन उपवन सा खिला रहे।
निभा सकूं सांसों का कर्ज
ऐसा कोई वर दो मां।
इस जीवन पर गर्व तुझे हो
ऐसा कोई वर दो मां।.....…ललिता❤️-
(वर दो मां)
तिमिर हृदय में रहे उजाला
ऐसा कोई वर दो मां।
भव सागर से मिले किनारा
ऐसा कोई वर दो मां।
कितना भी दुर्लभ जीवन हो
आशा का दीपक जला रहे ।
पथरीली हो राह भले ही
मन उपवन सा खिला रहे।
निभा सकूं सांसों का कर्ज
ऐसा कोई वर दो मां।
इस जीवन पर गर्व तुझे हो
ऐसा कोई वर दो मां।
@ललिता
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