प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती।
सच कहूं तो हकीकत तो बहुत कुछ है,
बस देखने और स्वीकारने का अपना अपना नजरिया है,
कोई हकीकत अपने अहम के कारण नहीं स्वीकारता, तो किसी को हकीकत से डर लगती है, तो कोई हकीकत का सामना ही नहीं करना चाहता, तो कोई सब हकीकत जनता है, इस बात का ढोंग रचता है।, तो कोई अनपेक्षित सकारात्मक हकीकत देख बस कुढ़ता रहता है, क्योंकि इस बात का श्रेय किसी और को मिलने वाला होता है,
बस कोई भी स्वयं आइना नहीं देखना चाहता, केवल दिखाना चाहता है,
कोई कुतर्क का ऐसा चक्रव्यूह रचता है, की खुद ही उसमें फंसा रहता है, अपने अहंकार के कारण वह स्वयं भी उससे तब तक बाहर नहीं निकलता जब तक अपना सर्वस्व समाप्त नहीं कर लेता,
महोदय यहां काल्पनिक इकाइयां ज्यादा है।
भ्रम ज्यादा है, जड़ता ज्यादा है,
सार्थकता का अभाव है, यही पतन का कारण है,
#ललित की कलम से!-
25 MAY 2019 AT 22:25