हर सुबह बस यही सवाल पूछते है वो
कोई इन ख़्वाबों की हक़ीक़त तो बता दे
ललित-
बहुत तमन्ना थी की अकेले पन का शकुँ मिले
अब इन तनहाइयों की चिल्लाहट बर्दाश्त नहीं होती
ललित-
मेरा गणित -
मैं
गणित में शुरू से बहुत कमज़ोर रहा
मैं सिर्फ़ जोड़ पाया, घटना भूल गया
आज भी सब रिश्ते सिर्फ़ जोड़ रहा हूँ
सुना था कुछ भी सिर्फ़ जोड़ने से बढ़ता है
मेरा गणित आज भी यही कहता है
बस जुड़ो तो बढ़ जाओगे
नहीं तो घट जाओगे
वक़्त के गणित में बँट जाओगे
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जीवन का सार बटोर चले
कुछ छूट गए कुछ साथ चले
झपकी पलकें , दिन बीत गया
कुछ आँख लगी , सूरज निकला
थे रंग बहुत .आँखों में भरे
कुछ बिखर गए कुछ साथ चले
कुछ गले मिले ,मिलने वाले
कुछ मिले बिना ही निकल चले
वादे करते , क़समें खाते
कुछ निभा गए कुछ तोड़ चले
जो शब्द रिझाते थे मुझको
कुछ याद रहे कुछ भूल चले
इन शब्दों का माया जाल कहें
कुछ हँसा गए कुछ रुला चले
ना जाने सब कैसे बीता
झपकी पलकें , दिन बीत गया
कुछ आँख लगी , सूरज निकला
जीवन का सार बटोर चले
कुछ छूट गए कुछ साथ चले
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क़सम खायी थी ज़ुबा ने , पर आँखें बोल पड़ी
जो बहा , वो दर्द मेरा भी था , उनका भी था
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मैं मुसाफ़िर हूँ मेरा नहीं है घर कोई
क्यों ख़यालों में आकर बस गया कोई
ना उम्मीद ना होते जो समझ जाते
उम्र कहाँ कटती है ख़यालों में कोई-
सफ़र
हम ना लौट आने को चले थे
ना थी दोस्ती रास्तों से
ना थी मंज़िलों की चाहत
उम्मीद ये की
सफ़र ख़ूबसूरत हो
ज़िंदगी जीने का
ये भी तो एक नज़रिया था
जो मिले बाँट दिए
हमने यादों के तोहफ़े
बाँटते ख़ुशियाँ
छुपाते ग़म अपने
जो मिला साथ तो
साथ
नहीं तो बस अकेले चले थे
कोई उम्मीद क्यों करे
हमारे लौट आने की
हम बस यों अकेले चले थे
हम ना लौट आने को चले थे
ललित-
आज़ाद हो उड़ान भर
समय की बेड़ियों को तोड़
निर्भीक हो
बेबाक़ हो
बस उड़ने को तैयार हो
क्या रोक पाएगा कोई
जोश के आवेग को
क्या बुझा पाएगा कोई
इस चेतना के ज्वाल को
तोड़ डालो आज तुम
मन के भ्रम के जाल को
तुम हो स्वतंत्र सदैव ही
अब थाम लो मशाल को
हो प्रशस्त मार्ग अब
ना विघ्न रोक पाएगा
इस वक़्त की पुकार को
महाकाल भी सुन पाएगा
मत विचारों में उलझ
सुन हृदय की बात को
एक रश्मि मात देगी
इस तिमिर की रात को
संकल्प साध
सज्ज हो
उन्नत ललाट
जोश ले
जीत की हूंकार भर
समय की बेड़ियों को तोड़
आज़ाद हो उड़ान भर
आज़ाद हो उड़ान भर
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बहुत ख़ामोशियों की आवाज़ें सुनी मैंने
मौन हूँ अब भी , की कोई सुने मुझ को
किस किस को बतायेंगे ये ग़म अपना
आँसुओं ने कहा ,की कोई सुने मुझ को
ज़ख़्म तुम्हें क्या दीखेंगे , मतलबी लोगों
ये लहू मेरा बहा है , कोई सुने मुझ को
दर्ज करलो उन किताबों में क़िस्से अपने
नीव की ईंट बने हम ,कोई सुने मुझ को
ख़ुशी के गीत गुनगुनाने का सबब वो जाने
ग़ज़ल ऐ दर्द बने हम ,कोई सुने मुझ को
किस किस को बतायेंगे ये ग़म अपना
आँसुओं ने कहा ,की कोई सुने मुझ को-